महाशिवरात्रि व्रत की सही विधि
आप सभी शिव भक्तों को सप्रेम नमस्कार, आज हम आपको भगवान शिव के पर्व महाशिवरात्रि के विषय में और उसमे रखे जाने वाले व्रत के सम्बन्ध में बताएँगे। हिन्दू धर्म में भगवान शिव की महिमा का गुणगान शादियों से चला आ रहा है। भगवान शिव त्रिदेवों में प्रमुख है इसी लिए इन्हे महादेव की संज्ञा भी दी जाती है। शिवरात्रि पर्व माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन अथवा इनके विवाह बंधन में बंधने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह माह में इस पर्व को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है की इस दिन जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा के साथ माँ गंगा के पावन जल में स्नान कर भगवान शिव की आराधना करता है उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। और जो स्त्री पूर्ण निष्ठां के साथ भगवान शिव के नाम से व्रत रखती है और उनकी आराधना करती है उसे एक अच्छा जीवन साथी मिलता है।
तो आईये हम आपको बताते है कि महाशिव रात्रि व्रत कैसे रखा जाता है और इसकी सही विधि क्या है:
आवश्यक पूजा सामग्री:
- गंगा जल
- शहद
- गाय का दूध
- दही एवं घी
- सरसों का तेल
- गन्ने का रस
- शक्कर
- जनेऊ
- गुलाल-अबीर
- धतूरे का फल, फूल
- अकाव के फूल
- बेल पत्र
- कपूर, धुप, रुई, दीप, चन्दन, इत्र
- पंच मिष्ठान, पंचामृत
- भगवन शिव और माता पार्वती की श्रृंगार सामग्री आदि।
व्रत और पूजा की विधि:
प्रातः काल उठ कर नित्य क्रिया करने के पश्चात गंगा में अथवा शुद्ध जल में स्नान कर, माथे पर भस्म तिलक लगा कर और इसके साथ गले में रुद्राक्ष माला धारण करना चाहिए। इसके साथ शिवालय में जाकर भगवान शिव के दर्शन कर उनके नाम से व्रत का आरम्भ करना चाहिए। और इस दौरान आप निम्न लिखित मंत्र का जप करे:
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम।
निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।
निर्विघ्नमस्तु से चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।
इसके पश्चात् "ॐ नमः शिवाय" का जाप करते हुए व्रत का आरम्भ करना चाहिए। इसके बाद शाम को बताये गए शुभ महुरत में भगवन शिव और माता पार्वती को गंगा जल में स्नान कराकर उनका श्रृंगार करे। इस दौरान पूजा के संपूर्ण समय में ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करते रहे। अब पुष्प, फल एवं बेल पत्र अर्पित करे चन्दन इत्र और धुप भगवान शिव को लगाकर देशी घी के दिये जलाये और कपूर और धुप जलाकर आरती करे। तत्पश्चात पूजा की अन्य सामग्रियाँ माता पार्वती और महादेव को अर्पित करे। और सबसे महत्व पूर्ण मन में श्रद्धा रखते हुए और मंत्रो का जाप करते हुए पूर्ण तन्मयता के साथ ईश्वर की आराधना में लगे रहे और उनसे अपने मन की व्यथा और इच्छा को व्यक्त करे।
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