SOCIAL DOCTOR SHIV PRAKASH

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Thursday, November 30, 2017

पढ़ाई में मन नहीं लगता है? और ध्यान लगाने में असमर्थ महसूस करते है? तो अवश्य पढ़े


ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम किसी भी कार्य को सुचारु रूप से करते है और अपने प्रत्येक कार्य में सफलता प्राप्त कर सकते है। किसी भी कार्य को भली-भाति करने लिए हमें सर्वप्रथम अपने मन को एकाग्रचित करना होगा ताकि हमसे कोई भी त्रुटि न हो सके, तभी उस कार्य में हम सफलता प्राप्त कर सकते है। जब भी हमारा यह ध्यान अपने निर्धारित कार्य से भटक जाता है तभी हमसे प्रायः गलतिया होती है और फिर इन्ही गलतियों के कारण हम असफल हो जाते है।

महाभारत काल में भी गुरु द्रौणाचर्या ने अर्जुन के ध्यान लगाने की क्षमता को ही देख कर कहा था कि वह एक दिन विश्व का सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी होगा और ऐसा ही हुआ भी। व्यक्ति अपने समस्त कार्यो एवं उद्देश्यों में तभी सफलता प्राप्त कर सकता है जब उसमे ध्यान लगाने की क्षमता विधमान हो। आप भी अपने जीवन में ये महसूस करते होंगे कि "ध्यान का क्या महत्व है?" और यहाँ तक की कई बार आप ने स्वयं को ध्यान लगाने या एकाग्रचित रखने में असमर्थ पाया होगा लेकिन यदि यह आपके साथ प्रायः होता है तब आपसे सदैव भूल या त्रुटि होती होगी ऐसी स्थिति में आप को कई बार अनेक समस्याओ का सामना भी करना पड़ा होगा। यदि आप ध्यान लगाने निपूर्णता पाना चाहते है तो ये लेख आपके लिए काफी महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।

ध्यान क्या है?
ध्यान, सूचनाओं के विभिन्न पहलुओं में से चुनिंदा किसी एक बिंदु पर स्वयं केंद्रित करने की व्यवहारिक और संज्ञानात्मक प्रक्रिया है, फिर चाहे यह व्यक्तिपरक या उद्देश्यपरक रूप से किन्ही जानकारियों में किसी एक जानकारी पाने के लिए किया जाये। ध्यान या एकाग्रता मस्तिष्क की एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसमें एक समय में एक साथ कई वस्तुएं या विचारों पर स्वय को केंद्रित किया जाता है। सरल शब्दों में यदि इसे समझना है तो कह सकते है कि ध्यान वह प्रक्रिया है जिसमे व्यक्ति द्वारा एक समय में विभिन्न सूचनाओं में से किसी निश्चित सूचना या जानकारी पर स्वयं को केंद्रित किया जाता है जो की एक उद्देश्यपरक प्रक्रिया होती है जो कि व्यक्ति द्वारा निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में उसकी सहायता करती है।

ध्यान लगाने या एकाग्रचित्त होने की क्षमता का विकास कैसे करे?
यदि आप ध्यान न लगा पाने की समस्या परेशान है, ज्यादा देर तक ध्यान नहीं लगा पाते है। घंटो पढ़ने के बाद भी आपको को कुछ याद नहीं रहता है, पढ़ाई या कार्यो में मन नहीं लगता है इसका अर्थ है कि आपमें ध्यान लगाने की क्षमता बहुत कम है और आपको ऐसी स्थिति में स्वयं में ध्यान लगाने की क्षमता का विकाश करने की जरुरत है। ध्यान लगाने या एकाग्रचित रहने की क्षमता का विकाश करने के लिए आप निम्नलिखित विधियों का पालन कर सकते है-:

  1. जाने ध्यान क्या है-: आपको स्वयं में यदि ध्यान की क्षमता का विकाश करना है तो सर्वप्रथम आपको इस बात को जानने का प्रयास करना चाहिए कि आखिर ध्यान क्या है, यह कैसे क्रियान्वित होता है, इसमें कौन कौन सी वस्तुए बाधा उत्त्पन्न करती है। इसके पश्चात ही आप स्वयं में ध्यान का विकाश कर सकते है। 
  2. ध्यान में बाधा उत्त्पन्न करने वाले कारको को दूर करना-: ध्यान लगाने में आने वाली बाधाओं जैसे अरुचि, प्रेरणा का आभाव, शारीरिक या मानसिक समस्याएं आदि की पहचान कर इसका निवारण विशेषज्ञों द्वारा कराना। 
  3. योग-: ध्यान में विस्तार के लिए आप योगा के विभिन्न आसनों जैसे प्राणायाम, अनुलोम-विलोम,और भ्रामरी आदि को प्रतिदिन करे। इससे आपमें ध्यान लगाने की क्षमता प्रतिदिन अभ्यास के साथ साथ निरंतर बढती है। कई अनुसंधानों में यह पाया गया है कि इनके अभ्यास से व्यक्ति में एकाग्रचित्त रहने, अच्छी स्मृति और तनाव मुक्त रहने में काफी लाभ मिलता है। 
  4. व्यायाम-: प्रतिदिन 30 मिनट तक व्यायाम करे, इससे आपका शरीर स्वस्थ रहता है और साथ ही इससे शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है और थकान भी कम लगती है। जिससे आप ज्यादा देर तक कोई कार्य कर सकते है।  प्रायः ध्यान भंग होने के लिए जिम्मेदार करने में शारीरिक और मानसिक थकान ही प्रमुख कारण होता है।  
  5. योजना बद्धता-: कोई भी कार्य हो चाहे पढ़ाई, खेल, या अन्य कोई आवश्यक कार्य हो, सभी को आप योजना बद्ध ढंग से करे। इससे आप अपने लक्ष्य तक क्रमसः बढ़ते जाते है और एक समय में आपका ध्यान एक ही विषय वास्तु पर लगा रहता है, जिससे आपको ध्यान लगाने में आसानी भी होती है। एक समय में जब आपको कई वस्तुओ पर ध्यान लगाना होता है तब आपसे गलतिया होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है अतः योजना बद्ध ढंग से जब कोई कार्य करते है तब आप कुछ निश्चित वस्तुओ पर ही ध्यान लगाते है और तब आपका समस्त ध्यान उन्ही पर रहता है।
  6. रुची के अनुसार विषय का चयन-: विशेषतः विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपनी रुचियों के आधार पर ही अपने अध्ययन का विषय चुने ताकि उन्हें उस विषय में ध्यान लगाने के साथ साथ उसका आनंद भी मिल सके। रुची के आधार पर विषय चुनने से यह लाभ भी मिलता है कि इससे व्यक्ति की जिज्ञासा शांत भी होती है और पुनः दूसरी जिज्ञासा उसे विषय के बारे में और अधिक जानने के लिए प्रेरित भी करती है फलस्वरूप ध्यान का निरंतर विस्तार होता रहता है। 
  7. शोर या अन्य ध्यान भटकाने वाली वस्तुओ को हटाना-: प्रायः ध्यान तभी अवरुद्ध होता है जब कोई विशेष ध्वनि होती है जो व्यक्ति का ध्यान भंग करती है। इसके अलावा पढ़ाई या कोई आवश्यक कार्य करते वक्त यदि फ़ोन पास होता है तब अक्सर ध्यान भंग होता है अतः सर्वप्रथम ध्यान भंग करने वाली ऐसी ही सभी वस्तुओ को अपने से दूर ही रखना चाहिए। 
  8. पूर्वावलोकन और योजना कौशल विकसित करना-: पढ़ाई या अन्य कोई महत्वपृर्णा के पूर्व ही उसके विषय में थोड़ा जानना चाहिए और योजना बनाना चहिये, उदाहरण के लिए विद्यार्थियों को चाहिए कि अगले दिन कक्षा में क्या पढ़ना है उसके बारे में आज ही थोड़ा स्वयं पढ़ना चाहिए और जहा कोई भी तथ्य न समझ आये उसे नोट कर लेना चाहिए जिन्हे वे अगले दिन शिक्षक से कक्षा में पूछ सकते है, इसके साथ उन्हें इससे कक्षा में ध्यान लगाने में भी मदद मिलती है। 
  9. स्वयं की ज्ञानेन्द्रियो को केंद्रित रखने का अभ्यास करना-: वस्तुतः ध्यान लगाने से आशय ही है सभी ज्ञानेन्द्रियो को एक निश्चित बिंदु पर केंद्रित करना। इस लिए यदि आप ध्यान लगाने की क्षमता का विकाश करना चाहते है तब आपको अपनी पाँचो ज्ञानेन्द्रियो पर नियंत्रण रखना सीखना होगा और उन्हें एक निश्चित बिंदु पर केंद्रित रखने का प्रयास करना होगा। अतः आपको प्रतिदिन अपनी ज्ञानेन्द्रियो केंद्रित रखने का अभ्यास करना चाहिए। 
  10. सक्रिय श्रवण विधि (एक्टिव लिसनिंग)-: आपको अपने ध्यान को केंद्रित रखने के अभ्यास के अंतर्गत ही सक्रिय श्रवण विधि या एक्टिव लिसनिंग विधि का भी अभ्यास करना आवश्यक है। इसके अंतर्गत आप सदैव अपने आप को कक्षा में सक्रिय रहना, चाहिए स्वयं में हमेसा जिज्ञासा को बनाये रखना चाहिए और जहा तक हो सके ज्यादा से ज्यादा सूचनाओं को ग्रहण व उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए और साथ ही साथ कक्षा में प्रश्नोत्तर के समय अपनी सहभागिता बनाये रखना चाहिए अर्थात शिक्षक द्वारा प्रश्न करने पर जवाब देना और कुछ यदि न समझ आये तो कक्षा के उपरांत शिक्षक से जानने का प्रयास करना चाहिए। 
इस प्रकार आपने देखा कि ध्यान का व्यक्ति के जीवन में कितना महत्व है और किस प्रकार आप स्वयं के ध्यान लगाने की क्षमता का विकाश कर सकते है। आशा करते है कि आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आई होगी अतः आपसे अनुरोध है कि आप हमसे जुड़े और दुसरो को भी सलाह दे। हम आपके लिए ऐसे ही रोचक और लाभप्रद जानकारिया लाते रहेंगे। 


Wednesday, November 29, 2017

परीक्षा भय या एक्जामोफ़ोबिया-क्या आप जानते है इसके बारे में?

परीक्षा भय या एक्जामोफ़ोबिया यह एक मानसिक विकार है जो कि अधिकांशतः छात्रों में पाया जाता है। परन्तु अधिकांश अभिभावक और शिक्षक अज्ञानता के कारण इस समस्या की गंभीरता को पहचान नहीं पाते हैं। और वे केवल यही समझते हैं कि बच्चा असमर्थ अथवा ठीक से पढ़ाई नहीं करता है। अधिकांश माता-पिता परीक्षा में असफ होने पर बच्चो पर क्रोध करते है परन्तु वे यह नहीं जानने का प्रयास करते है की आखिर कही या कोई अन्य समस्या तो नहीं है जिसके कारण बच्चा अपनी परीक्षा में अच्छे प्राप्तांक नहीं प्राप्त कर पा रहा है। 

यद्यपि यह विकार किसी भी उम्र से शुरू हो सकता है, सामान्यतः यह बालयावस्था या किशोरावस्था के शुरुवात में होता है। इस मनोविकार में बच्चे में एक विशिष्ट स्थिति को लेकर डर रहता  है, यह स्थिति एक परीक्षा या एक साक्षात्कार हो सकता है। जहां एक छात्र की क्षमता का परीक्षण किया जाता है जब एक छात्र को इस स्थिति का सामना करना पड़ता है, तो उसमे अत्यधिक घबराहट व तनाव उत्त्पन्न हो जाता है और उसे यह भय होता है कि वह अपनी  परीक्षा के लिए अभी तैयार नहीं है या फिर उसमे उस स्थिति का सामना करने की क्षमता  नहीं है। इसके परिणामस्वरूप उनका परीक्षा में प्रदर्शन ख़राब हो जाता है और उन्हें परीक्षा में काम प्राप्तांक प्राप्त होते है। प्रत्येक ख़राब प्रदर्शन के पश्चात उनकी मनःस्थिति दिन प्रतिदिन ख़राब होती जाती है। 

कई अनुसंधानो द्वारा पहले ही साबित किया जा चका है कि किसी भी व्यक्ति को इष्टतम स्तर पर प्रदर्शन करने के लिए न्यूनतम स्तर की तनाव, चिंता या भय आवश्यक है। इस न्यूनतम स्तर की चिंता के कारण, मस्तिष्क असाधारण रूप से काम करता है; जिसके फलस्वरूप एक छात्र तुरंत ही सवालों के जवाब याद कर सकता है वही दूसरी ओर, अत्यधिक डर और चिंता का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है और यह छात्रों की यादास्त को अवरुद्ध या प्रभावित करता हैं भले ही उन्होंने अच्छी तरह से ही क्यों न तैयारी की हों। परीक्षा भय मनोरोग भी इसी सिद्धांत का पालन करता है और चिंता में वृद्धि के साथ साथ प्रदर्शन की गुडवत्ता भी घटती जाती है  नतीजतन, छात्र कोई वांछित परिणाम नहीं प्राप्त कर पाता है। जब यह भय या डर, उच्चतम बिंदु पर होता है, तो विद्यार्थी इतना डरा हुआ होता है कि वह परीक्षा देने से बचने के तरीकों की तलाश शुरू कर देता है और कई बार तो परीक्षा देने ही नहीं जाता है या फिर परीक्षा बीच में छोड़ कर परीक्षा हॉल से बाहर निकल जाता है।

एक्ज़ामोंफोबिया के कारण कई गंभीर समस्याएं जैसे तनाव, ध्यान में अस्थिरता, विस्मरण, निर्णय न ले पाना, घबड़ाहट, बेचैनी, आदि समस्याएं भी हो सकती है इसके साथ साथ शारीरिक समस्याए जैसे सर दर्द, उलटी,दस्त, बार-बार पेशाब आना, अादि भी हो सकती है। इससे आगे चलकर अवसाद या अन्य मानसिक रोग भी हो सकते है। 

एक्ज़ामोंफोबिया के कारण
यदि आप इस समस्या के बारे में जानेगे तो पाएंगे कि यह भय का बच्चे में बाल्यावस्था से विकसित होने लगता  है। परीक्षा भय बच्चो में होने के लिए कई करण जिम्मेदार होते है जिनके बारे में सभी लोगो को जानना चाहिए। इसके होने के निम्नलिखित कारण जिम्मेदार होते है ;

1. प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता दूसरे से भिन्न होती है। वह कुछ कार्यो या विषयो में बहुत अच्छा हो सकता है और कुछ में उतना अच्छा नहीं भी हो सकता है। बच्चा किसी-किसी विषय में बहुत ही अच्छा होता है  इसको ही हम प्रतिभा कहते हैं। कई माता-पिता अपने बच्चे से सामान्य से अधिक अपेक्षा करते हैं, और वे बच्चो पर अपने सपनों और अपनी इच्छाओ को लागू करते हैं। और जब बच्चा उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाता है, तो वह वह स्वय को शर्मिंदा महसूस करता हैं। कई बार माता-पिता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे ताना भी मारते है परिणामस्वरूप, बच्चा इस निष्कर्ष पहुंचता है कि यदि वह अपने माता-पिता की अपेक्षाओं के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर पाया तो उसे हमेशा ताने सहना होगा और शर्मिंदा होना होगा। और यही उसमे एक भय के रूप में बदल जाता है जो उसके प्रदर्शन को प्रभावित भी करता है। 

2. कई ऐसे माता-पिता भी होते हैं जो अपने बच्चों के संबंध में ज्यादा सुरक्षात्मक होते हैं। वे अपने बच्चों को किसी भी प्रकार से तनाव नहीं लेने देते है और हर समय उसकी सहायता करते रहते है। माता-पिता का अपने बच्चो ले लेकर अत्यधिक सुरक्षात्मक दृश्टिकोण उनके बच्चों में आत्मनिर्भरता, तनाव से लड़ने की क्षमता आदि गुणों के विकास में बाधा उत्तपन्न करता है। और यही आगे चलकर बच्चो में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्तपन्न करता है जिसमे से एक्ज़ामोंफोबिया एक गंभीर समस्या है। 

3. घर का वातावरण भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिन बच्चो के माता-पिता हमेशा झगड़ा करते रहते हैं, उनके बच्चे आमतौर पर स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाते है। उनमें असुरक्षा की भावना प्रभावी होने लगती है और कुछ समय पश्चात्  यही असुरक्षा की भावना बच्चो के मन परीक्षा के समय तनाव उत्त्पंन्न करती है।

4. कुछ शिक्षकों का व्यवहार भी इस डर के लिए जिम्मेदार होता है। व्यावहारिक या सैद्धांतिक परीक्षाओं के दौरान, ऐसा देखा गया है की कुछ शिक्षकों में छात्रों की मनःस्थिति को समझ नहीं पाते हैं। कुछ शिक्षकों में बस इस बात को जानने में अधिक रुचि होती  हैं कि छात्र क्या नहीं जानते और उनके किन प्रश्नो का जवाब नहीं देते  है। और जब बच्चे शिक्षकों द्वारा इस दौरान पूछे गए प्रश्नो का जवाब नहीं दे पाते है तब वे काफी हतोत्साहित होते है और कई अन्य समस्याओ से ग्रस्त हो जाते है जैसे; छात्र द्वारा अपना आत्मविश्वास खो देना, तनाव ग्रस्त होना, अपनी योग्यताओं को लेकर चिंतित रहना आदि। यही सब जब बढ़ने लगता है तब या एक्ज़ामोंफोबिया या परीक्षा के भय के रूप में बदल जाता है। 

एक्ज़ामोंफोबिया या परीक्षा के भय के निवारण के उपाय-: इस समस्या के समाधान के लिए निम्न बातो का ध्यान देना अति आवश्यक है
  1. माता-पिता को अपने बच्चो की योग्यताओ व क्षमताओं के विषय में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करना चाहिए और इसी के आधार पर उन्हें विषयक्षेत्र के चयन में मदद करनी चाहिए न कि उन पर अपनी अपेक्षाओं का दबाव डालना चाहिए। 
  2. समय समय पर बच्चो से बातचित करना चाहिए और यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि उन्हें कहा समस्या हो रही है लेकिन यहाँ यह भी ध्यान देना चाहिए कि उस समस्या का समाधान बच्चे द्वारा ही करना चाहिए ताकि वह आत्मा निर्भर बने और तनाव पूर्ण परिस्थितियों का सामना कर सके। 
  3. माता-पिता को बच्चो को लेकर अति सुरक्षात्मक दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए बल्कि बच्चो को तनाव से लड़ने, परिस्थितियों का सामना करने आदि के लिए निरंतर मार्गदर्शित व उत्साहित करना चाहिए। 
  4. माता-पिता को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अपने बच्चो की प्रत्येक इच्छाओ या मांगो की पूर्ति नहीं करनी चाहिए। बल्कि बच्चो में इस समझ का विकास करना चाहिए की क्या उचित है की अनुचित अथवा क्या आवश्यक है क्या अनावश्यक। इससे बच्चे में परिस्थिति विशेष में निर्णय लेने मदद मिलती है और उनमे निर्णय लेने की क्षमता का भी विकाश होता है। 
  5. शिक्षकों को भी चाहिए कि वे विद्यार्थियों की मनोदशा को समझे, व बाल मनोविज्ञान के सिद्धांतो और विधियों के द्वारा विद्यार्थियों की समस्याओ का निदान व समाधान करे। शिक्षकों को विद्यार्थियों की कभी हतोत्शहित या प्रताड़ित नहीं करना चाहिए साथ ही साथ उन पर अत्यधिक अध्ययन को लेकर दबाव नहीं डालना चाहिए। जहा तक हो सके उन्हें विद्यार्थियों का अधिक से अधिक उचित दिशा में मार्गदर्शन करते रहना चाहिए। 
इस प्रकार से अपने देखा कि एक्ज़ामोंफोबिया या परीक्षा का भय, यह एक कितना गंभीर समस्या है जिसके विषय में हम सब को अधिक से अधिक जानने का प्रयास करना चाहिए। और ऐसी कोई समस्या आपके बच्चो को न हो इस लिए सदैव सजग भी रहना चाहिए। फिर भी यदि कोई इससे ग्रसित हो भी जाता है तो इसका इलाज मनोचिकित्सा में उपलब्ध है। समय रहते आपको इसका इलाज करा लेना चाहिए ताकि कोई और गंभीर शारीरिक या मानसिक रोग इसकी वजह से न उत्तपन्न हो सके। आशा करते है कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा। ऐसी ही कुछ अन्य रोचक जानकारिया हम आपके लिए आगे भी लाते रहेंगे। अतः हमसे जुड़े और अन्य लोगो तक भी इस जानकारी को पहुचाये। 




Tuesday, November 28, 2017

what is Stress? जानिये आखिर तनाव होता क्या है?

तनाव हमेसा हानिकारक नहीं होता है यह आपको सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में और सफलता प्राप्त करने में भी प्रेरणा का स्त्रोत होता है। लेकिन जब निरंतर तनाव में रहते है तब इसका प्रतिकूल प्रभाव आपके मन व शरीर दोनों पर ही पड़ता है। अत्यधिक तनाव लेने से दिन-प्रतिदिन आपका स्वास्थ क्षीण होता जाता है और इससे आपके  चेहरे पर समय से पूर्व ही चिंता की रेखाएं, झर्रियाँ, आँखों के नीचे डार्क सर्कल, आने लगते है और आप जवान होते हुए भी वृद्ध दिखाई देने लगते है। जहा एक ओर अत्यधिक तनाव आपके सौंदर्य को प्रभावित करता है वही इससे तरह-तरह के शारीरिक व मानसिक रोग भी होने लगते है। इस लिए आप सभी को "तनाव क्या है? और किस तरह आप अपने तनाव को नियंत्रित कर सकते है?" के विषय में अधिक से अधिक जानना चाहिए।  

तनाव क्या है?
अब यहाँ प्रश्न उठ खड़ा होता है कि आखिर ये "तवाव है क्या?"  आपके भी मन में भी यह प्रश्न आया ही होगा तो चलिए हम आप के इस प्रश्न का जवाब देते है। "तनाव किसी आवश्यकता या गंभीर खतरे की स्थिति में हमारे शरीर द्वारा की जाने वाली एक प्रतिक्रिया है, फिर चाहे वह आवश्यकता या खतरा काल्पनिक हो वास्तविक।" यह हमारे शरीर के सुरक्षा तंत्र का ही एक हिस्सा है जो कुछ स्थिति में स्वतः ही स्वचालित होता है जैसे जब कोई वस्तु आपकी आँखों की तरफ आती है तब आपकी पलके स्वतः ही बंद हो जाती है, यह प्रतिक्रिया शरीर के सुरक्षा प्रणाली के प्रतिक्रिया का ही एक उदहारण है जो स्वतः ही स्वचालित होती है। ठीक इसी प्रकार से हमारा शरीर तनाव मुक्त होने के लिए भी कुछ ऐसी ही प्रतिक्रियाएं करता है। 

कुछ  मनोवैज्ञानिकों ने इसे "लड़ो या भागो" की प्रतिक्रिया के रूप में भी परिभाषित किया है। इसे आप इस प्रकार से भी समझ सकते है जब युद्ध की स्थिति में आपके सामने कोई ऐसा प्रतिद्वंदी होता ही जो आपके बराबर या आपसे कम शक्तिशाली है तो आपको स्वय पर यह विश्वास होता है कि आप उसे हरा सकते है तब आप उससे लड़ने को तैयार होते है, वही जब यही स्थिति पूर्व से विपरीत होती है जब आपके समक्ष एक या एक से अधिक व्यक्ति जो आपके से काफी बलवान हो, तब आपको ये विश्वास नहीं होता है कि आप उसने लड़ पाएंगे तब आपका उस परिस्थिति से भागने का मन करता है या फिर आप उनसे लडने से इनकार ही कर दे। इस प्रकार अपने देखा की तनाव आपके निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी प्रभावित करता है जिससे कई बार तनाव की दशा में गलत निर्णय भी ले लेते है। 

अत्याधिक तनाव से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव 
जब कोई व्यक्ति अत्यधिक तनाव ग्रस्त रहता है तब उसके स्वास्थ्य पर इससे गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो न केवल उसे शारीरिक बल्कि मान को विभिन्न रोगो से ग्रसित करता है।  अत्यधिक तनाव से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुछ गंभीर प्रतिकूल प्रभाव निम्नलिखित है;
  1. अवसाद और चिंता
  2. किसी भी तरह का दर्द- विशेषतः सर दर्द 
  3. नींद सम्बन्धी समस्याएं
  4. स्व - प्रतिरक्षित रोग
  5. कब्ज़ की शिकायत
  6. त्वचा सम्बन्धी समस्या, जैसे एक्जिमा
  7. दिल की बीमारी
  8. वज़न सम्बन्धी समस्याएं
  9. प्रजनन सम्बन्धी समस्याएं
  10. सोच और स्मृति से सम्बंधित समस्याएं
अत्यधिक तनाव के लक्षण
अब यह प्रश्न उठता है कि हम किसी को अत्यधिक तनाव है कि नहीं यह कैसे पता करे? तो हम को बताना चाहेंगे कि आप अत्यधिक तनाव का पता कुछ लक्षणों के आधार पर लगा सकते है। जिनमे से कुछ इस प्रकार से है;
  • संज्ञानात्मक लक्षण
  1. स्मृति समस्याएं- जैसे भूलना, कुछ याद न कर पाना अादि 
  2. ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता
  3. निर्णय न ले पाना 
  4. नकारात्मक सोच 
  5. उत्सुकता या तीव्र विचार का आना
  6. लगातार चिंतित रहना
  • भावनात्मक लक्षण
  1. अवसाद या सामान्य दुःख
  2. चिंता और हड़बड़ी 
  3. अस्थिर मनोदशा, चिड़चिड़ापन, या क्रोध
  4. अभिभूत होना 
  5. अकेलापन और अलगाव
  6. अन्य मानसिक या भावनात्मक स्वास्थ्य समस्याओं
  • शारीरिक लक्षण
  1. दर्द एवं पीड़ा
  2. दस्त या कब्ज
  3. थकान 
  4. मतली, चक्कर आना
  5. छाती में दर्द, तेज हृदय गति
  6. सेक्स ड्राइव का नुकसान
  7. बार-बार सर्दी या फ्लू
  • व्यवहारत्मक लक्षण
  1. अधिक या कम भोजन
  2. बहुत ज्यादा या बहुत कम नींद आना 
  3. अलग थलग रहना 
  4. कार्य या जिम्मेदारियों की उपेक्षा करना
  5. तनाव कम करने के लिए शराब, सिगरेट या ड्रग्स का इस्तेमाल करना
  6. असामान्य आदते (जैसे कि दांतो से नाख़ून चबाना, पेसिंग) 

तनाव उत्तपन्न करने वाले कुछ सामान्य कारक 
तनाव के लक्षणों के विषय में तो आपने जान लिया लेकिन अब आपके मन में यह प्रश्न आया होगा कि आखिर तनाव उत्त्पन्न ही क्यों होता है? तो आपको हम बता दे की ये तनाव विभिन्न कारणों से उत्त्पन्न होता है जिन्हे यदि आप नियंत्रण कर ले तो आपको तनाव जैसी समस्या नहीं होगी। तनाव उत्तपन्न करने वाले कारण निम्नलिखित है; 

तनाव के कुछ समान्य कारण
  1. जीवन में गंभीर परिवर्तन
  2. अत्यधिक कार्यभार  
  3. समंधो में कठिनाइया 
  4. वित्तीय समस्याएँ
  5. अत्यधिक व्यस्तता 
  6. बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी 
  7. तनाव के शारीरिक या आंतरिक कारण 
  • निराशावाद
  1. अनिश्चितता को स्वीकार करने में असमर्थता
  2. कठोर सोच, लचीलेपन की कमी
  3. नकारात्मक आत्म-विष्लेषण 
  4. अवास्तविक आकांक्षाएं / पूर्णतावाद
  • तनाव उत्तपन्न करने वाली जीवन की कुछ 10 सबसे गंभीर घटनाये 
  1. पति या पत्नी की मृत्यु
  2. तलाक
  3. विवाह जुदाई/ प्रेम में असफलता 
  4. किसी कानून अपराध के लिए जेल 
  5. परिवार के करीबी सदस्य की मृत्यु
  6. चोट या बीमारी
  7. शादी
  8. नौकरी खोना
  9. विवाह सुलह
  10. सेवानिवृत्ति होना 
इस प्रकार अपने देखा कि तनाव क्या है? इसके लक्षण क्या है? और तनाव के उत्तन्न करने वाले कौन-कौन से करक होते है? लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि तनाव वास्तव में अपने आप कोई विशेष समस्या नहीं है बल्कि तनाव जब एक निश्चित सीमा से अधिक होता है तब यह समस्या बनता है। अापने यह भी देखा कि जहा एक ओर तनाव आपको सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित करता है वही जब यह व्यक्ति के क्षमता से अधिक हो जाता है तब यह व्यक्ति के कार्यों में बाधा उत्पन्न करता है| आप तनाव उत्पन्न करने वाले कारकों पर यदि नियंत्रण पा लेते है तब आप अपने तनाव पर भी नियंत्रण भी पा लेते है। आपको यह भी ध्यान रखना चाहिए कि आपके तनाव से लड़ने क्षमता आप पर ही निर्भर करती है निरंतर अभ्यास कर के आप अपने तनाव से लड़ने की क्षमता को बढ़ा सकते है और सदैव तनाव मुक्त रह सकते है। आशा करते है कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा। इसके अगले अध्याय में हम आपके लिए "तनाव प्रबंधन" के सम्बन्ध में बताएँगे अतः आप हमसे जुड़े और दुसरो को भी बताये ताकि सभी को इसका लाभ मिल सके।



Monday, November 27, 2017

TOP 5 THE BEST SMART PHONES, Did you see?- in Hindi

आज की युवा पीढ़ी हाईटेक बन गयी है। टेक्नोलॉजी का युग आ रहा है अब हर दिन नयी नयी खूबियों से लैश टेक गैजेट बाजार में आ रहे है उन्ही में से एक है स्मार्टफोन। स्मार्ट के बनने के बाद से ही युवाओ में इसे लेकर क्रेज बढ़ गया है। हर युवा चाहता है की उसके पास बेहतर से भी बेहतर स्मार्ट फ़ोन हो जिसमे अनगिनत खुबिया विधमान हो। आपकी भी कुछ ऐसी ही ख्वाहिश होगी तो हम आपके लिए लाये है कुछ ऐसे ही स्मार्टफोन जानकारी जो आपके इस क्रेज़ को बढ़ा देगी और हमें बिलकुल यकीन है कि आपको हमारी पेशकश जरूर पसंद आएगी। तो ज्यादा देर न करते हुए हम आपको सीधे उनसे सरोकार कराते है;

रेडमी 4 (ब्लैक, 64 जीबी) 
यह भी एक जानीमानी कपमनय रेडमी का स्मार्ट फ़ोन है जिसकी खुबिया लाजवाब है।  इसमें आपको 13 मेगा पिक्सल रियर एंड 5 मेगा पिक्सल फ्रंट कैमरा, 4 जी.बी. रैम और 64 जी.बी. रोम, 5 इंच का एच.डी. डिस्प्ले, 1.4  गीगा हर्ट्ज़ का प्रोसेसर, 4100 एम.ए.एच. की बैटरी लगी है। सबसे अछि बात इसमें ये है कि 3 सिम स्लॉट  लगे है जिसमे से २ में 4जी. सिम सपोर्ट करता है। और इसकी कीमत जान कर आप थोडा हैरान भी होंगे यह आपको इतनी सारी खूबियों के साथ मात्रा 10,999 रु में ऑनलाइन बाजार में मिल जाता है।  

लेनेवो ज़ेड2  प्लस (ब्लैक)
लेनेवो के इस स्मार्टफ़ोन में भी वो सभी खुबिया जो आपको पसंद है। इसमें आपको क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 820, 4 कस्टम क्रियो कोर, 2.15 गीगा का प्रोसेसर, 14 एनएम फिनफेट प्रोसेस, 4 जीबी डीडीआर 4 रैम, 64 जीबी रोम, 13 मेगा पिक्सल रियर और 8 मेगा पिक्सल फ्रंट कैमरा, ड्यूल 4 जी सिम सपोर्ट के साथ 3500 एम.ऐ.एच. की बैटरी मिलती है। यह भी एक जबरदस्त फ़ोन है जिसे आप ऑनलाइन मात्र 10,299 रु में खरीद सकते है।

लेनोवो के 8 नोट (वेनोम ब्लैक, 4 जीबी)
लेनेवो के ही इस स्मार्ट फ़ोन में बेहतर खुबिया आपको मिल जाएँगी। इसमें आपको मिलता है 13 व 5 मेगापिक्सल का ड्यूल बैक कैमरा और 13 मेगा पिक्सल का ही फ्रंट कैमरा, जिससे आप बेहतरीन पिक्चर ले  सकते है। इसके साथ ही एंड्रॉइड वि.7.1.1 नूहैट ऑपरेटिंग सिस्टम 2.3 गीगा हर्ट्ज़ हेलेओ एक्स 23 10-कोर प्रोसेसर, 4 जीबी रैम और 64 जीबी की इंटरनल मेमोरी जिसे आप 128 जीबी तक का एक्सटर्नल मेमोरी लगा कर बढ़ा सकते है। साथ ही साथ इसमें है 15 डब्ल्यू टर्बो चार्जिंग बैटरी, और डुअल 4जी सिम सपोर्ट की सुवधा  तो बताइए है न यह एक बेहत्रारिन स्मार्टफोन। इसे आप ऑनलाइन मात्रा 12,999 रु में खरीद सकते है। 

मोटो जी5 एस  प्लस (लूनर ग्रे, 64 जीबी) 
इसमें वो हर खूबी मौजूद है जो आज के एक युवा को पसंद है जैसा की नाम से ही दिख रहा है की यह मोटोरोला कंपनी का स्मार्टफोन है जो अपने आप में एक जानीमानी कंपनी है। इसमें आपको फ्रंट और रियर दोनों तरफ 13 मेगा पिक्सल का कैमरा मिलेगा बेहतरीन फोटोग्राफ के सकते है। इसके साथ इसमें 4 जी.बी. रैम और 64 जी.बी. रोम, 5.5 इंच का एच.डी. डिस्प्ले, ड्यूल 4जी. सिम सपोर्ट, 2.0 गीगा हर्ट्ज़ का प्रोसेसर, 3000 एम.ए.एच. की बैटरी लगी है कुल मिलाकर देखा हाय तो ये एक बेहतर स्मार्टफोन है। इसे ऑनलाइन आप लगभग 15,999 रु में खरीद सकते है। 

नोकिया 6 (मैट ब्लैक, 32 जीबी)
स्मार्टफोन की बात करे और नोकिया कंपनी के नोकिता 6 स्मार्टफोन की बात न हो तो या गलत होगा। अब तक की सबसे प्रसिद्ध कंपनी नोकिया ने भी अपना एक स्मार्टफोन बाजार में लाया है जिसकी खूबी किसी से कम नहीं है। इसमें आपको मिलता है 3 जीबी रैम और 32 जीबी की इंटरनल मेमोरी, ड्यूल 4 जी सपोर्ट, 3000 एम.ऐ.एच. की बैटरी, फिंगरप्रिंट स्कैनर, ऑल-मेटल यूनीबॉडी और एनएफसी सुविधा, एम्पलीफायर, डॉल्बी डिजिटल साउंड ड्यूल स्पीकर, नोकिया कंपनी का विश्वास। कुल मिलकर ये एक बेहतर स्मार्टफ़ोन है, जिसे आप ऑनलाइन 14,999 रु मात्र में खरीद सकते है। 

हालाकि ऑनलाइन मार्किट में आपको इसी रेंज में कई और भी बेहतर स्मार्टफ़ोन मिल जायेंगे पर आपको ये भी ध्यान देना चाहिए कि फ़ोन किस कंपनी का है, उसके कुछ यूजर जिन्होंने उसे ख़रीदा है उनकी इस फ़ोन के बारे में क्या राय है? और सबसे जरुरी उसे कितनी रेटिंग मिली है इन्ही कुछ बातो का ध्यान रख कर ही आप स्मार्ट फ़ोन ख़रीदे। आशा करते है हमारी ये पेशकश आपको पसंद आयी होगी, हम आगे भी आपके लिए ऐसे ही  विषय में  जानकारिया लाते रहेंगे। अतः आप हमें फॉलो करे ताकि  हमारे लेख आप तक तुरंत पहुंच सके। 

Sunday, November 26, 2017

गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड के फ़ोन की निगरानी करे-आप दोनों के बीच कोई तीसरा तो नहीं है?



आज कल अपने ऐसे कई केस के बारे में देखा या सुना होगा कि गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड या पति-पत्नी के बीच कोई तीसरे को लेकर झड़गा हो गया या कोई अपने साथी को धोखा दे रहा है। जिससे न केवल कितने लोगो का रिस्ता ख़त्म हो गया बल्कि कितनो के साथ गंभीर घटनाये तक हो गयी। क्या आपका साथी आपके साथ ईमानदार है? कही वो आपको धोखा तो नहीं दे रहा है? आप इस बात का यदि पता करना चाहते है तो हम आपके लिए ऐसी ही  आवश्यक जानकारी लेकर के आये है। आज कल आप सभी स्मार्टफोन तो प्रयोग करते ही होंगे इसी स्मार्टफोन के माध्यम से आप अपने साथी की प्रत्येक गतिविधियों पर अपनी निगरानी रख सकते है। अब आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि आखिर कैसे? तो आईये हम आपको बताते है;

अपने और अपने साथी के स्मार्टफोन में एक एप्लीकेशन को इनस्टॉल कर के ऐसा कर सकते है। जिसे आप गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते है उस एप्लीकेशन का नाम है ट्रैक व्यू ।  इसकी निम्नलिखित खुबिया है-;
  1. इससे आप जीपीएस के माध्यम से अपने साथी की सही सही स्थिति का पता लगा सकते है की वो किस जगह पर है। 
  2. इससे आप लाइव वीडियो भी देख सकते है की आपका साथी क्या कर रहा है इसके साथ ऑडियो भी सुन सकते है। 
  3. साथ ही साथ आपके साथी को इसके बारे में पता भी नहीं चल पायेगा कि आप उस पर निगरानी रखे हुए है। 
  4. आप कही से अपने साथी की निगरानी  है भले वह किसी दूसरे शहर या राज्य में ही क्यों न हो। 
  5. इसे आप अपनी खोये हुए फ़ोन की लोकेशन भी चेक कर सकते है। इसके अतिरिक्त इसमें बहुत खुबिया है। 
ट्रैक व्यू का इस्तेमाल कैसे करे?
इसके लिए आपको निम्नलिखित स्टेप्स का पालन करते हुए प्रयोग कर सकते है;


  1. सर्वप्रथम आप अपने स्मार्टफोन के गूगल प्ले सटोरे में जाये वह सर्च में ट्रैक व्यू लिख कर एप्लीकेशन को खोजे और उसे इनस्टॉल कर ले। फिर यही प्रक्रिया अपने साथी के स्मार्ट फ़ोन में दोहराये। 
  2. फिर दोनों स्मार्टफोन के ट्रैक व्यू एप्लीकेशन में एक ही जीमेल की आईडी से लॉगिन करे।
  3. दोनों में लॉगिन करने बाद आप अपने साथी के स्मार्ट फ़ोन के सेटिंग ऑप्शन में जाए यदि वहा एप्लीकेशन को हाईड करने का ऑप्शन है तो ट्रैक व्यू  अप्लीकेशन को हाईड कर दे या गूगल प्ले में कई एप्लीकेशन हाईड करने वाले अप्लीकेशन से भी आप ऐसा कर सकते है। 
  4. फिर अपने स्मार्ट फ़ोन में ट्रैक व्यू अप्लीकेशन खोले और कनेक्टेड डिवाइस को खोजे और ओपन करे अब आप निगरानी करने के लिए तैयार है। 
  5. सबसे जरुरी बात इसके प्रयोग के लिए ये आवश्यक है कि दोनों फ़ोन  इंटरनेट ऑन हो। 

अब आप निश्चिन्त होकर रह सकते है और अपने साथी की हर गतिविधियों पर नज़र रख सकते है। इससे न केवल आप कभी किसी के धोखे में नहीं पड़ेंगे बल्कि। आप शक, शंशयय, तनाव  जैसी समस्याओं से बच सकते है। और इससे आप एक दूसरे का ध्यान भी रख सकते है किसी गंभीर स्थिति में एक दूसरे को ढूंढ सकते है. प्रायः लोग रस्ते में कही खो जाते है विशेष तौर पर बच्चे। आप उनपर भी ध्यान आसानी से रख सकते है। आशा करते है आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा। हम ऐसी ही रोचक और महत्वपूर्ण जानकारी आप तक पहुंचते रहेंगे। 

क्रोध प्रबंधन - क्रोध पर नियंत्रण कैसे पाए

क्या आपको अधिक क्रोध या गुस्सा आता है?
गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाते है ?
तो जरूर पढ़े
प्रत्येक व्यक्ति के मन में हर क्षण कोई न कोई भाव या संवेदना जन्म लेती है, उन्ही संवेदनाओ में से एक है क्रोध करना। वास्तव में क्रोध कोई स्थायी भाव नहीं होता है यह व्यक्ति में तब जन्म लेता है जब उसके साथ कोई दुर्व्यवहार करता है, उसके कार्यो में बाधा बनता है, या फिर व्यक्ति की अपेक्षाओ के विपरीत जब भी कुछ होता है तब उसे क्रोध आता है। आपको भी क्रोध तो आता ही होगा, परन्तु जब यह क्रोध किसी में सामान्य से अधिक आता है तो उसके लिए यह क्रोध कभी कभी बड़ा ही अहितकारी सिद्ध होता है। इसी लिए शास्त्रों में क्रोध को नकारात्मक भाव या संवेदना के रूप में बताया गया है। क्रोध की अवश्था में व्यक्ति सही-गलत का निर्णय नहीं ले पता है और प्रायः उससे भूल हो जाती है जिसका आभास उसे क्रोध के शांत होने के बाद पता चलता है। यदि आपको भी अधिक क्रोध आता है और आप अपने क्रोध पर नियंत्रण पाने में स्वयं को असमर्थ  पाते है तो हम आपके लिए आपकी इस समस्या का समाधान लेकर आये है। 

क्रोध जब नियंत्रण से बाहर होता है तो आप पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
क्रोध से आप पर कई प्रकार के प्रभाव पड़ते है जिनमे से कुछ निम्नलिखित है;
  1. क्रोध से शारीरिक स्वश्थ पर प्रभाव-: क्रोध से आपके स्वस्थ पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। क्रोध जब नियंत्रण से बहार होता है या बार-बार क्रोध करते है हो इससे शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यप्रणालियों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्रोध की अवस्था में व्यक्ति के ह्रदय गति और रक्त संचार की गति काफी तीव्र हो जाती है जो आगे चल कर हृदय रोग जैसी समस्या में बदल जाती है जिनमे उच्च रक्त चाप, हाइपरटेंशन, आदि कुछ समस्याएं आती है। इसके अतिरिक्त मधुमेह, प्रतिरक्षा प्रणाली में कमजोरी आदि समस्याये भी इससे होती है। 
  2. क्रोध से मानसिक स्वास्थ पर प्रभाव-: अत्यधिक क्रोध शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे अनिद्रा, दुश्चिंता, तनाव, विस्मरण, एकाग्रता में अस्थिरता, अवसाद या विषाद, जैसी कई मानसिक रोग हो सकते है।
  3. क्रोध से व्यवसाय पर प्रभाव-: अत्यधिक क्रोध आने से जहा एक ओर व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है जो उसके और उसके क्लाइंट के साथ व्यव्हार को प्रभावित करता है वही दूसरी ओर यह व्यक्ति के रचनात्मक क्षमता और कार्यक्षमता को भी प्रभावित करता है जो आगे चलकर व्यवसाय व नौकरी में असफलता का कारण बनता है। 
  4. पारिवरिक व वैवाहिक जीवन पर प्रभाव-: अत्यधिक क्रोध करने से व्यक्ति के पारिवारिक व वैवाहिक जीवन  भी प्रभावित होता है जो कलह, मनमुटाव, अविश्वास, शक, को जन्म देता है। परिवार में हमेसा अशांति रहती है। अधिकांश मामलो में क्रोध के कारण ही विवाह विच्छेद या तलाक होता है। 
क्रोध पर नियंत्रण कैसे करे?
उपरोक्त के आधार पर अपने देखा की क्रोध आप के जीवन को कैसे प्रभावित करता है। अब आपको यह जानने जी आवश्यकता होगी कि आप क्रोध को कैसे नियंत्रित रख सकते है। क्रोध को नियंत्रित रखने के लिए आपको निम्नलिखित विधियों का पालन करना होगा;
  1. क्रोध के संकेतो की पहचान -: क्रोध को नियंत्रित रखना चाहते है तो आप पहले इसके संकेतो को पहचानना होगा और जब आपको लगे ये संकेत आपमें है तब आप करोड़ को नियंत्रित करने वाली विधियों का पालन शुरू कर देना होगा। क्रोध के कुछ संकेत इस प्रकार है; पेट में ऐठन, दांत पीसना या रगड़ना, साँस का तेज़ होना, ह्रदय गति बढ़ना, मासपशियों का तन जाना , ध्यान स्थिर न रहना आदि। 
  2. क्रोध को बढ़ाने वाले विचारो पर नियंत्रण और नकारात्मक विचारधारा में परिवर्तन-: आपकी विचारधारा में ही कुछ ऐसे नकारात्मक तत्त्व होते है जो आपके क्रोध की आग को और बढ़ाते है जो विशेष कर नकारात्मक विचार होते है जिनमे से कुछ इस प्रकार है जैसे; "हर काम के लिए लोग मुझे ही जिम्मेदार ठहराते है, हमेसा मै ही गलत क्यों होता हूँ , क्या मैं कोई अच्छा काम नहीं करता हूँ, आखिर मैं ही क्यों, आदि कई ऐसे विचार ही जो हमारे क्रोध  को बढ़ाते है। व्यक्ति को इन्ही नकारात्मक विचारो में परिवर्तन करना चाहिए। 
  3. क्रोध आने पर व्यक्ति को तुरंत ही उस स्थान से हट जाना चाहिए जहा पर उसे क्रोध आ रहा हो, और किसी शांत स्थान पर जाकर स्वयं को शांत करने का प्रयास करना चाहिए। 
  4. क्रोध आने पर श्वास की गति बढ़ी जाती है इस समय गहरी साँस ले कर श्वास की बढ़ी हुई गति को कम करने का प्रयास करना चाहिए। श्वास की गति मंद पड़ने पर  क्रोध स्वतः ही कम होने लगता है। 
  5. क्रोध की अवस्था में स्वयं का ध्यान उस जगह से हटाने का प्रयास करना चाहिए जिसकी वजह से क्रोध आ रहा है। और अपना ध्यान किसी अन्य विन्दु पर लगना चाहिए, इस दौरान आप मन में कई अच्छी बात सोच कर स्वयं को शांत करने का प्रयास करना चाहिए। इस दौरान आप मन में गिनती (1- 20 तक ) गिनना चाहिए या मन में कोई गीत गुनगुना चाहिए। 
  6. ध्यान दे क्रोध का ये भाव बहुत देर तक नहीं रहता है आप यदि अपने ध्यान को कुछ देर तक किसी अन्य विन्दु पर लगते है तो आप अपने क्रोध पर नियंत्रण पा सकते है। इस दौरान आप गहरी साँस लेकर धीरे धिरे छोड़े ताकी क्रोध के कारण उत्पन्न तनाव, ह्रदय गति में वृद्धि, आदि सामान्य हो सके। कुछ प्रयास करने के साथ-साथ आप अपने क्रोध पर नियंत्रण पा लेंगे। यदि इसके पश्चात् भी आप इसमें सफल नहीं हो पते है तो घबराने की आवश्यकता नहीं है। आप किसी साइकोलोजिस्ट, साइकेट्रिस्ट, या कौन्सेलेर से मिले जो मनोचिकित्सा विधि से आपकी समस्या समाधान कर देंगे। 
क्रोध कोई अपने आप में समस्या नहीं है क्रोध भी हमारे स्वभाव का ही हिस्सा है बस समस्या तो तब होती है जब क्रोध हमारे नियन्त्र में नहीं बल्कि हम क्रोध के नियंत्रण में आ जाते है। अतः हमें चाहिए कि हम स्वयं को इस  प्रकार से ढले कि हम हमारी भावनाओ और इच्छाओ पर नियंत्रण रख सके ता कि हम कभी भी इनके कारण समस्या में न पड़े। स्वस्थ व  सफल जीवन के लिए व्यक्ती को अपनी संवेदनाओ और भावनाओ पर नियंत्रण रखना चाहिए। आशा करते है आपको हमारा लेख पसंद आया होगा। हम आपके लिए और भी रोचक जानकारिया लाते रहेंगे। यदि आपको ये लेख पसंद आया हो तो अपने मित्रो को भी इसे पढ़ने की सलाह दे। 

How to quit smoking? in Hindi

सिगेरट पीना स्वास्थ के लिए हानि कारक है यह जानने के बावजूद आज समाज में कितने ही लोग है जो सिगेरट पीते है। कुछ तो सिगेरट ऐसे पीते है मानो जैसे की वो ऐसा कर के काफी आकर्षक दिखते है, मर्द तो मर्द अब तो महिलाये भी सिगेरट पीते हुये दिखने लगी है। पर ऐसा करने वाले लोग कही न कही यह जानते है कि ऐसा कर के वह अपने आप के साथ ही खिलवाड़ कर रहे है। लेकिन कई बार इसका आभास तब होता है जब उन्हें पता चलता है कि उन्हें इसकी वजह से कैंसर या कोई अन्य गंभीर रोग हो गया है। इससे स्वास्थ तो ख़राब होता ही है इसके साथ-साथ व्यक्ति के वैवाहिक व पारिवारिक रिश्ते पर भी प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। कई व्यक्तियों को जब इन समस्याओ का आभास होता है तब वह सिगेरट पीना छोडता तो चाहते है पर सिगरेट पीने लत के कारण वह छोड़ नहीं पाते है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को क्या करना चाहिए इसी विषय पर चर्चा करने के लिए इस लेख को लिखा गया है। 

यदि आप या आपका कोई साथी सिगेरट पीने लत से परेशान है और सिगेरट पीना छोड़ना चाहते है तब आप निम्नलिखित बातो को ध्यान से पढ़े और बताई गयी विधि का गंभीरता से पालन करे-:

सिगेरट पिने की लत क्या है? और क्यों होती है ?
सिगेरट में तंबालकु होता है जिसमे निकोटिन नाम का एक पदार्थ होता है यदि आप लगातार प्रतिदिन सिगेरट पीते है तो यह निकोटिन आपके मस्तिस्क को प्रभावित करता है इससे न केवल आपको शारीरिक समस्या होती है बल्कि मानसिक समस्या भी होती है। निकोटिन शरीर में जाकर शरीर को इसका आदती बना देता है एक तरह से यह शरीर और मन दोनों पर नियंत्रण कर लेता है जिससे व्यक्ति न चाहते हुए भी इसका सेवन करता है। इसके सेवन से व्यक्ति में तनाव व चिंता से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है जिसकी वजह से उसे जब भी उसे तनाव होता है तब वह सिगेरट पीना चाहता है। इस प्रकार से यह एक लत या नशे में बदल जाता है जो दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जाता है।

सिगेरट पीने लत से कैसे बचे?
यदि आप सिगेरट पीना छोड़ना चाहते है तब आपको निम्नलिखित बातो को ध्यान देना चाहिए;

  • सर्वप्रथम आपको यह जानना होगा की आखिर कौन-कौन सी बाते है जिससे आपका सिगेरट पीने का मन करता है उदहारण के लिए; आप किसके साथ सिगेरट पीते है? कौन सी चीज आपको अधिक तनाव देती है? कौन सी चीज या बात आपके मन में सिगेरट पीने की इच्छा को जन्म देती है? ऐसी ही बातो को ध्यान पूर्वक नोट करे। 
  • इन सब बातो को जिसको अभी अपने नोट किया है उन्हें आपको अब से नजरअन्दाज करना होगा या फिर उनसे दूर रहना होगा। 
  • जो भी आपको सिगेरट पीने के लिए उकसाते है जैसे; शराब पीना, अन्य सिगेरट पीने वालो अदि से आपको दूर रहना होगा। 
  • सिगेरट की लत के कारण जब आप इसे छोड़ने की कोशिश करते है तब आपके शरीर व मन को इसकी आदत के कारण आपको कई अन्य समस्याओ का भी सामना करना पड़ता है जैसे; हाथ कपना, बेचैनी, तनाव, चिंता, घबड़ाहट, थकान, एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, नींद न आना, ह्रदय गति का मंद होना आदि। इस लिए ऐसी समस्याओ का सामना करने के लिए आपको स्वय को तैयार करना होगा। 
  • व्यक्तिगत योजना-: यदि आप सिगेरट पीना छोड़ना चाहते है तो आपको एक व्यक्तिगत योजना बनाना होगा, इसके लिए आपको निम्न विधि के आधार पर योजना बद्ध होना होगा; 
  1. सिगेरट को पूर्ण रूप से छोड़ने की दिन निर्धारित करे अर्थात एक तारिक निर्धारित करे कि  इस तारीख तक आप इसे छोड़ देंगे।  
  2. अपने परिवार और मित्रो को बताये कि आप सिगेरट पीना छोड़ना चाहते है और वे आपकी इस योजना में आपकी मदद करे। 
  3. इस दौरान आप को जिन बाधाओं का सामना करना होगा, स्वय को उसके लिए तैयार करे। 
  4. सिगेरट से सम्बंधित कोई भी सामग्री आपके पास या घर पर हो तो  घर से बहार उसे फेक दे। 
  5. किसी चिकित्सक की सलाह और परमर्श ले। 
  • सिगेरट की लत से छोड़ते वक्त उत्त्पन्न होने वाली समस्याओ या बाधाओं  के निवारण के लिए निम्न बातो का ध्यान दे;
  1. स्वय का ध्यान सिगेरट की और जाने से रोकने के लिए स्वय को किसी न किसी काम में व्यस्त रखे। 
  2. स्व्य को हमेसा याद दिलाते रहे कि आप सिगेरट छोड़ रहे है। अपने आत्म विश्वाश को बढ़ाते रहे और स्वय से सदैव कहे कि आप इसे छोड़ सकते है। 
  3. जब भी आपका सिगेरट पीने का मन करे तो आप पानी पीये साथ ही साथ अपना ध्यान हटाने के लिए कुछ न कुछ जैसे टॉफ़ी या च्विंगम मुह में रखे। बाजार में निकोटिन च्विंगम भी उपलब्ध है जिससे आपको काफी मदद मिलती है आप इसका भी प्रयोग कर सकते है।  परन्तु ध्यान दे इसका प्रयोग आप विशेषज्ञों की सलाह पर ही करे। 
  4. स्वयं को हमेसा एकाग्रचित रखने के लिए आप प्रतिदिन योग की विधि अनुलोम विलोम और भ्रामरी करे। 
  5. थोड़ा व्यायाम भी प्रतिदिन करे ताकि शरीर में स्फूर्ति बनी रहे। 
  6. स्वयं को चिंता व तनाव की स्थिति में शांतचित्त रखने का प्रयास करे क्योकि इस दौरान आप का मन सिगेरट पीने का अधिक करता है। आप चिंता व तनाव प्रबंधन के विषय में जाने और इस पर नियंत्रण पाना भी सीखे। 
इस प्रकार से योजना बद्ध ढंग से आप सिगेरट की लत के चंगुल से स्वयं को निरंतर प्रयासरत रह कर आप कुछ दिनों में बाहर आ जायेंगे। एक बार यदि आप इस पर नियंत्रण पा लेते है तब आपको ये ध्यान रखना चाहिए की आप को आगे कभी भी इसका सेवन नहीं  करना चाहिए नहीं तो अब तक का आपका सारा प्रयास ही बेकार चला जायेगा। स्वयं को सदैव सिगेरट या उससे जुडी किसी भी चीज का आदि न बनने दे ताकि भविष्य में आप फिर इसकी लत में न पड़े। 

ध्यान दे; सिगेरट पीने की लत हो या कोई अन्य नशा इतनी आसानी से नहीं छूटता है इसके लिए व्यक्ति में आत्म विश्वास, दृढ़ संकल्प, लगन और धैर्य रखने की क्षमता आदि आवश्यकता होती है। कई बार जब आप अपने से छोड़ना चाहते है तब आप एक या दो प्रयास के बाद ही असफल हो जाते है। ऐसी स्थिति में निराश होकर आप पुनः इसके चंगुल में फस जाते है। अतः आप ऐसी स्थिति में किसी चिकित्सक की सलाह ले, विशेष तौर पर साइकोलोजिस्ट या साइकेट्रिस्ट या साइकियाट्रिक सोशल वर्कर की सहायता आपके लिए अधिक हितकारी होगा। अतः आप इन विशेषज्ञों की सलाह अवश्य ले जो कि आपकी समस्या के निवारण के ही विशेषज्ञ होते है। 

आशा करते है हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा, आपसे अनुरोध है कि आप इस लेख के विषय में अपने मित्रो और रिस्तेदारो को अवश्य बताये ताकि उनको भी इसका लाभ मिल सके। ताकि एक स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए हमारे इस उद्देश्य में आपका भी योगदान मिले।  



Monday, November 20, 2017

सर्वोच्च न्यायालय ने माता वैष्णो के धाम के लिए नए मार्ग पर लगाया प्रतिबंध



सर्वोच्च न्यायालय ने माता वैष्णो के धाम के लिए नए मार्ग पर लगाया प्रतिबंध 

हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र एवं पूजनीय स्थल वैष्णो माता मंदिर की महिमा को कौन नहीं जनता है।  हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाला  प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में एक बार इस पावन तीर्थ स्थल पर एक बार अवश्य जाना चाहता है।  यहाँ पर मांगी गयी हर दुवा को वैष्णो माता कभी भी अनसुनी नहीं करती है।  इसी धर्म स्थल की ओर जाने के लिए एक नविन मार्ग का निर्माण कार्य चल रहा था जिस पर सुप्रीम कोर्ट एक आदेशानुसार रोक लगा  दिया गया। कोर्ट ने वैष्णो देवी गुफा मंदिर जाने वाले पैदल श्रद्धालुओं और बैट्री चालित कारों के लिए 24 नवंबर से नया मार्ग खोलने के राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेश के आदेशानुसार रोक लगा दी है।
 


गत सोमवार को जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड का पक्ष सुनने के बाद यह आदेश दिया।  बोर्ड ने शीर्ष अदालत से कहा कि 24 नवंबर से नया मार्ग खोलना संभव नहीं है।  बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि वैष्णो देवी गुफा के लिए एक अन्य मार्ग का निर्माण कार्य चल रहा है।  यह अगले साल फरवरी में श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। 

उन्होंने यह भी कहाँ कि माता के धाम तक पहुंचने के लिए पहले से दो मार्ग खोले जा चुके है और अब बोर्ड तीसरे मार्ग का निर्माण कर रहा है। पीठ ने इसके साथ ही उस व्यक्ति को नोटिस जारी किया, जिसकी याचिका पर हरित न्यायाधिकरण ने 13 नवंबर को नया मार्ग खोलने का आदेश दिया था। 

इसके पूर्व एनजीटी ने नया मार्ग खोलने का आदेश देने के साथ ही वैष्णो देवी मंदिर में रोजाना दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को भी 50,000 तक सीमित कर दिया था।  जिसमे  यह भी  कहा गया था कि नए मार्ग पर घोड़ों और खच्चरों को चलने की अनुमति नहीं होगी।  राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि यदि कोई व्यक्ति वैष्णो देवी गुफा की ओर जाने वाली सड़क या बस अड्डे पर गंदगी फैलाता मिले तो उस पर दो हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाये ताकि माता के स्थल तक पहुंचने वाले मार्ग में स्वच्छता बानी रही रहे। 

Sunday, November 19, 2017

World's Fastest and Cool Bikes-in Hindi

आज के युवा पीढ़ी में शायद ही कोई युवा हो जो बाइक्स पसन्द न करता हो। हर युवक चाहता है कि उसके पास एक बेहतरीन बाइक हो जिससे वो लोगो का आकर्षण पा सके। आप की भी ऐसी ही कुछ जरूर आकांक्षा होगी। हम आपके लिए विश्व की सबसे बेहतरीन बाइक्स की एक श्रृंखला लेकर आये है जो आपकी बाइक से जुडी आकांक्षा को और भी बढ़ा देगी। तो आईये ज्यादा विलम्ब न करते हुये हम आपको सीधे उनसे सरोकार करते है। 

डुकाटी १९८०
हमारी इस श्रृंखला की सबसे पहली बाइक है डुकाटी १९८०  इटली की एक प्रसिद्ध कंपनी डुकाटी ने इसे बनाया है। इसकी अधिकतम गति की ही यदि बात की जाये तो यह १६९ मिल प्रति घंटा (२७१ किमी प्रति घंटा) है। इसमें स्वतः ठंडा रहने वाला, एल आकर का  सिलेंडरवाला इंजन लगा हुवा है। इसमें कुल ६ गिअर जिससे इसकी गति को बढ़ाया या घटाया जा सकता है इसके साथ ही साथ दिखने में काफी आकर्षक है इसको देखने से ही  आनदं आ जाता है।

बी.ऍम.डब्ल्यू . के. १२०० एस.
इस श्रंखला की ये  दूसरी बाइक है जो देखने में किसी से कम नहीं है। इसमें १६ वॉल्व  व ४ सिलेंडर वाला स्वतः ठंडा होने वाला इंजन लगा है जिसके कारण इसकी गति भी अधिक हो जाती है इसकी अधिकतम गति लगभग १७४ मिल प्रति घंटा (२७८ किमी घंटा) है। इसके साथ यह भी आकर्षक दिखती है।

अप्रिलिअा आर.एस.वी. १००० मिले 
 तेज़ व दमदार बाइक की जब बात की जाती है तो इसके  बारे में बात करना तो बनता है यह ९६०सीसी की वी ट्वीन इंजन वाली बाइक है जिसकी  गति है १७५ मिल प्रति घंटा (२७८ किमी घंटा) ।

कावासाकी निंजा जेड एक्स-११ / जेड-आर ११०० 
यह स्टाइलिश मोटरसाइकिल जापान आधारित कंपनी कावासाकी द्वारा निर्मित है। इसमें 1052 सीसी 4-स्ट्रोक, 4 सिलेंडर, डीओएचसी, तरल-कूल्ड इंजन लगा है। यदि आप इसको गति देते हैं तो आप 176 मील प्रति घंटे (283 किमी / घंटा) तक पहुंच सकते हैं। 



एमवी अगस्ता एफ 4 1000 आर
यह इटली के अगस्ता द्वारा निर्मित है। यह 4 सिलेंडर, 16 रेडियल वाल्व, डीओएचसी, तरल कूल्ड इंजन द्वारा संचालित होता है। इसकी गति 176 मील प्रति घंटे (299 किमी / घंटा) है।

यामाहा वाईजेडएफ आर 1
यह  जापान की प्रसिद्ध मोटरसाइकिल निर्माता कंपनी, यामाहा द्वारा निर्मित है इस में समानांतर 4-सिलेंडर, 20 वाल्व, डीओएचसी, तरल-कूल्ड इंजन लगा है । इसकी अधिकतम गति 186 मील प्रति घंटे (297 किमी / घंटा) है। 


होंडा सीबीआर 11 00XX ब्लैक बर्ड
यह भी जापान के अग्रणी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनी होंडा द्वारा बनाया गया है। इसमें 1137 सीसी, तरल-कूल्ड, चार सिलेंडर इंजन लगा है। इसकी अधिकतम गति काफी तेज़ लगभग 190 मील प्रति घंटा (310 किमी / घंटा) है।


MTT टर्बाइन सुपरबाइक Y2K
इसमें रॉयल रॉयस 250-सी 20 टर्बो शाफ्ट इंजन लगा है। इस मोटरसाइकिल की अधिकतम गति है 227 मील प्रति घंटे (365 किमी / घंटा)


सुजुकी हायाबुसा
लगता है की तेज़ और आकर्षक बाइक बनाए का बीड़ा जापानी कंपनियों ने ही उठा लिया है जापान की एक कंपनी ने सुजुकी ने इसे बना है इसमें1340 सीसी, 4 स्ट्रोक, चार सिलेंडर, तरल कूल्ड, डीओएचसी, 16 वाल्व इंजन लगा है। इसकी अधिकतम गति है 248 मील प्रति घंटे (392 किमी / घंटा)


डॉज टॉमहॉक
हमारी इस श्रृंखला की बेहतरीन और तेज़ बाइक यही है। यह बहुत सीमित मात्रा में बनायीं गयी मोटरसाइकिल हैं जिसमे 10 सिलेंडर, 90 डिग्री वी-टाइप इंजन लगा है। इसकी अधिकतम गति हमारी इस श्रृंखला में सबसे तेज़ लगभग 350 मील प्रति घंटे (560 किमी / घंटा) तक है



आशा करते है आपको हमारी यह श्रंखला आपको पसंद आयी होगी। आगे हम ऐसी ही बाइक से जुडी श्रृंखलाए लाते रहेंगे। 

Saturday, November 18, 2017

Healthy Sleeping Hours-in Hindi



प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए उसे उसके शरीर की कुछ  महत्वपूर्ण आवश्यक्ताओ का सही समय पर पूरा करना अति आवश्यक है जैसे कि भूक, प्यास, स्वच्छता, व्यायाम, और नींद। जिसमे से हर किसी का समय पर पूरा होना उसके लिए विशेष रूप से आवश्यक अति आव्यश्यक है। प्रायः लोग इन को लेकर लापरवाही करते रहते है जो आगे चलकर उन्हें विभिन्न प्रकार के रोगो से ग्रस्त करती है। विशेषकर आज के भागम-भाग के दौर में लोग नींद को लेकर ज्यादा ही लापरवाही करते है। कही कोई अधिक कार्यो व जिम्मेदारियों के कारण सही समय तक सो नहीं पाता है तो कही कोई अधिक रात तक टीवी देखने, फ़ोन के प्रयोग करने, पढ़ाई करने, आदि कार्यो के कारण जगता ही रहता है, इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते है जो जरुरत से ज्यादा देर तक सोते  रहते है। आपको यह जान कर हैरानी होगा कि जरुरत से ज्यादा या कम समय सोने से आपको भविष्य में तरह-तरह रोग हो सकते है। 

अब आपके मन में यह प्रश्न आ रहा होगा की आखिर सामान्य रूप से एक व्यक्ति को कितना सोना चाहिए, तो हम यहाँ आपको बताना चाहेंगे कि वॉशिंगटन, डीसी, (2 फरवरी, 2015) - राष्ट्रीय स्लीप फाउंडेशन (एनएसएफ़) द्वारा "उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक नींद की अवधि" का पता करने के लिए चिकित्सा विज्ञानं के विभिन्न क्षेत्रों विशेषज्ञों के समूह का गठन किया गया, जिसके द्वारा शोध के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार प्रस्तुत किया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की आयु के आधार पर उत्तम स्वास्थ्य के लिए सामान्यरूप से आवश्यक नींद की अवधि निम्न प्रकार से है-:
  • नवजात शिशु (0-3 महीने)-: नींद की अवधि प्रत्येक दिन 14-17 घंटों तक होती है ( जो पहले यह 12-18 घंटे मानी जाती थी)
  • शिशुओं (4-11 महीने)-: नींद की अवधि दो घंटे बढ़कर 12-15 घंटे हो गई (पहले यह 14-15 घंटे थी)
  • बच्चा (1-2 वर्ष)-: नींद की अवधि एक घंटा बढ़कर 11-14 घंटे हो गई (पहले यह 12-14 था)
  • प्रीस्कूलर (3-5)-: नींद की अवधि एक घंटा बढ़कर 10-13 घंटे  हो गई (पहले यह 11-13 थी)
  • स्कूल की आयु के बच्चों (6-13)-: नींद की सीमा एक घंटा बढ़कर 9-11 घंटे हो गई (पहले यह 10-11 थी)
  • किशोर (14-17)-: नींद की सीमा एक घंटा बढ़कर 8-10 घंटे हो गई (पहले यह 8.5-9.5 थी)
  • युवा वयस्क (18-25)-: नींद की सीमा 7-9 घंटे (नई आयु वर्ग) है
  • वयस्क (26-64)-: नींद की सीमा में कोई बदलाव नहीं हुआ है और जो सामान्यतः 7-9 घंटे तक होती  है
  • वृद्ध वयस्क (65+)-: नींद की सीमा 7-8 घंटे (नई आयु वर्ग)

नींद में कमी या वृद्धि से होने वाली शारीरिक व मानसिक बीमारियाँ- : अधिकांश शोधो में यह पाया गया है कि जहां एक ओर अन्य बीमारियों की वजह से व्यक्ति की नींद पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वही दूसरी ओर नींद में अत्यधिक कमी या वृद्धि से कई शारीरिक व मानसिक रोग भी हो सकते है जिनमे से कुछ निम्न लिखित है-:

  • नींद की अत्यधिक कमी व्यक्ति के मस्तिष्क की विभिन्न कार्यप्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है इससे एकाग्रता, सीखने की क्षमता, स्मृति, चिंतन-मनन, तर्कशक्ति, समस्या समाधान की क्षमता आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो आगे चल कर विभिन्न मानसिक रोगो जैसे अवसाद, उन्माद, दुश्चिंता, मनोविदिलता, स्मृति ह्रास आदि को उत्त्पन्न करती है। इन सबके विपरीत कुछ और मानसिक समस्याएं भी होती है जो नींद में समस्या के कारण होती है जैसे नींद में अधिकता (स्लीपिंग ब्यूटी डिसऑर्डर), दुःस्वप्न, स्वप्न दोष, यौन इच्छा में कमी, आदि समस्याएं। 
  • नींद में अत्यधिक कमी या वृद्धि व्यक्ति में कई शारीरिक रोगों को भी जन्म देती है जिनमे से कुछ निम्न लिखित है;
  1. ह्रदय से सम्बंधित रोग जैसे; दिल का दौरा, ह्रदय का रुक जाना, अनियमित दिल की धड़कन, उच्च रक्त चाप, आघात आदि। 
  2. एक ओर जहा निद्रा की कमी से हृदय सम्बन्धी रोग होते है वही कुछ अध्ययनों में यह पाया गया है कि ज्यादा देर तक सोने वाले लोगो में मधुमेह (डायबिटीज) होने की संभावना अधिक होती है। 
  • इन सबके अतिरिक्त विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक प्रमुख कारण नींद की कमी होना भी है। रात्रि में लम्बी दुरी की यात्रा में अधिक देर तक वाहन चलते वक्त व्यक्ति में नींद की कमी वजह से  ध्यान लगाने में दुविधा होती है और कई बार व्यक्ति को नींद आने लगती है और पालक झपकने मात्र से सड़क दुर्घटना हो जाती है। 

उपरोक्त के आधार पर यदि आप निर्धारित समय से अधिक या काम समय तक सोते है तो आपके लिए यह हितकारी नहीं है। आपको आगे चल कर इससे शारीरिक व मानसिक दोनों ही प्रकार के रोग हो सकते है अतः आपको निर्धारित मात्रा में ही सोना चाहिए। और स्वस्थ रहने के लिए हमेसा अनुशासित जीवन जीना चाहिए क्यों कि स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन के हर डगर पर सफल होते है। 

Thursday, November 16, 2017

How to stop negative thoughts? in Hindi


नकारात्मक विचारो पर नियंत्रण पाने का मंत्र
व्यक्ति के मन में कभी न कभी नकारात्मक विचार आते ही है पर कभी कभी ये नकारात्मक विचार मन में लगातार आने लगते है जिसे हम रोकना तो चाहते है पर रोक नहीं पाते है। इन नकारात्मक विचारो की वजह से जहाँ एक ओर व्यक्ति सदैव विचलित रहता है वही इसकी वजह से व्यक्ति में निरंतर आत्मविश्वास, सहनशीलता, समायोजन क्षमता, ध्यान लगाने की क्षमता, आदि में ह्रास होने लगता है और जिसकी वजह से व्यक्ति प्रायः असफल होता रहता है। ये नकारात्मक विचार व्यक्ति के मन इतना हावी होते जाते है कि वह इन पर नियंत्रण पाने में भी असफल होता जाता है जो कुछ समय के पश्चात् व्यक्ति को शरीरिक और मानसिक विकारो से ग्रस्त कर देता है। इससे व्यक्ति का समस्त व्यव्हार दिनचर्या, व्यक्तिगत सम्बन्ध, और व्यवसाय आदि सब प्रभावित होता है  फिर ऐसे में उस व्यक्ति को इस समस्या से बाहर आने में भी काफी समय लगता है।

कुछ नकारात्मक विचार-:
  • मुझ से नहीं हो पायेगा। 
  • मै अयोग्य और नाकारा हूँ। 
  • ये मेरे लिए बहुत ही कठिन है। 
  • मुझसे गलती हो गयी तो लोग मुझ पर हसेंगे। 
  • दुसरो की भाति मै उतना समझदार नहीं हूँ। 
  • मेरा तो भाग्य ही ख़राब है।
  • मेरा जन्म लेना ही व्यर्थ है, मुझे तो मर जाना चाहिए। 

इन सबकी ही भाति व्यक्ति के मन में अनगिनत प्रकार के नकारात्मक विचार आते है। जिनसे वह निरंतर परेशान रहता है और उसे ये समझ नहीं आता है कि वह क्या करे और क्या न करे, हमेसा इसी उलझन में निरंतर परेशान रहता है। अब यह प्रश्न उठता है "व्यक्ति इन नकारात्मक विचारो पर नियंत्रण कैसे पाए?" तो हम आपको बता दे कि मनोविज्ञान की एक मनोचिकित्सा विधि जिसे हम संज्ञानात्मक चिकित्सा विधि (कॉग्निटिव थेरेपी) कहते है, इसके माध्यम से इस समस्या का पूर्णतः इलाज संभव है। इसी विधि के कुछ तत्वों का हम यहाँ व्याख्या कर रहे है जिनका पालन कर के आप इनसे बाहर आ सकते है। 

नकारात्मक विचारो पर नियंत्रण पाने की विधि-:
यदि आप या आपके किसी प्रिय जान को यह समस्या है तो आपको इन नकारात्मक विचारो पर नियंत्रण पाने के लिए आपको कुछ सोपनो (स्टेप्स) का अनुसरण करना होगा जो निम्नवत है-: (नोट-: इन सोपानों को एक ही बार में प्रयोग करने मात्र से आप नकारात्मक विचार पर नियंत्रण नहीं पा सकते है आपको लगभग ५ सप्ताह तक की एक अनुसूची (योजना) बनाकर, उसका अनुसरण विधि पूर्वक करना होगा।) 
  1. नकारात्मक विचारो की सूची  तैयार करे-: सर्वप्रथम आप एक कागज पर उन सभी नकारात्मक विचारो की एक सूची  तैयार करे जो आपके मन में निरंतर आ कर आपको विचलित करती है। सूची तैयार करते समय आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि कौन सा नकारात्मक विचार आपके मन में ज्यादा समय तक रहता है और कौन सा कम। और इनकी आवृति के अनुसार बढ़ते हुए क्रम में उन्हें लिखे ताकि उनके समाधान के लिए आपको योजना बनाने में आपको सहायता मिले। 
  2. प्रतिद्वंदी सकारात्मक विचार-: प्रत्येक नकारात्मक विचार के लिए एक उसकी प्रतिद्वंदी सकारात्मक विचार को उसके समक्ष लिखे। उदाहरण के लिए जैसे यदि आपके मन में ये नकारात्मक विचार बराबर आता है कि "ये मुझसे नहीं हो पायेगा" तो आप उसके समक्ष एक उसकी प्रतिद्वंदी सकारात्मक विचार जैसे "मै ये कर सकता हूँ  और मुझे खुद पर पूरा विश्वास है" , इसी प्रकार से आप सकारात्मक विचारो की भी एक सूची तैयार कर ले। जिन्हे आपको हमेसा याद करना और मन में दोहराना होगा। और जब कोई नकारात्मक विचार मन में आये तो आप अपने मन में उस नकारात्मक विचार की प्रतिद्वंदी सकारात्मक विचार को बार-बार दोहराना होगा। इस प्रकार आपका स्वयं पर विश्वास बढ़ेगा और धीरे धीरे आप उस विचार पर नियंत्रण पा लेंगे। 
  3. क्रमबद्ध  रूप से नकारात्मक विचारो का दमन-: प्रत्येक  नकारात्मक विचार को उसकी प्रभावशीलता के आधार पर जैसा की अपने अपनी सूची बनाते वक्त किया था, उन्हें उनकी आवृति के अनुसार बढ़ते हुए क्रम में लिखा था उसी आधार पर उनका दमन भी करना होगा। सर्वप्रथम कम प्रभावी नकारात्मक विचार पर नियंत्रण स्थापित करे फिर उससे अधिक प्रभावी विचार पर। यह भी ध्यान दे कि प्रत्येक नकारात्मक विचार पर नियंत्रण पा लेने की एक समयावधि भी निर्धारित करे और उसी अवधि के अंदर उस लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करे। और प्रत्येक लक्ष्य की प्राप्ति के पश्चात् सूची से उन नकारात्मक विचारों का नाम काटते जाये जिन पर अपने नियंत्रण पा लिया है। अंत में जब आप सभी पर विजय पा चुके हो तब आप उस सूची को फाड़ दे और भविष्य में उनसे फिर कभी प्रभावित नहीं होंगे ऐसा स्वयं को वचन दे। 
  4. स्वयं में सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास-: यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है इस विधि का जिसमे आप अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना सीखते है। सकारात्मक दृष्टिकोण से हमारा आसय है एक ऐसी विचारधारा का निर्माण करना जिससे आप स्वयम में आत्मविश्वास, आत्मनियंत्रण, आत्मबोध और आशावादिता  आदि का विकास कर सके और जिससे आप नकरात्मकता के जाल में पुनः न फस सके। याद रखे आपका दृष्टिकोण जितना ही अधिक सकारात्मक होगा आप नकारात्मकता से उतना ही स्वयं को दूर रखने में समर्थ सिद्ध होंगे। 
इस प्रकार आप यदि एक निर्धारित योजना के तहत क्रमबद्ध ढंग से प्रयास करे तो नकारात्मक विचारो पर पूर्ण नियंत्रण पा सकते है। फिर भी यदी आप ऐसा करने में असफल हो जाते है तो आपको घबराने की जरुरत नहीं है धैर्य रखे और अपने नजदीकी किसी मनोचिकित्सक, मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्स्किय समाज कार्यकर्ता (कॉउंसलर) से मिले। जो आपकी समस्या के विशेषज्ञ होते है और आपको समस्या से पूर्ण रूप से बाहर लाने में सक्षम होते है जिनकी सहायता और मार्ग दर्शन से आप अपनी समस्या से शीघ्र-अतिशीघ्र बाहर आ जायेंगे। 

अधिक जानकारी के लिए हमसे जुड़े-:

Wednesday, November 15, 2017

What is Obsessive Compulsive Disorder? in Hindi



मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति
  • अमेरिका की कुल आबादी का लगभग 1.२ % आबादी इस रोग से ग्रसित है। 
  • किसी व्यक्ति के जीवन में इससे ग्रसित होने की संभावना २.३% तक होती है।
  • स्त्रियों में पुरुषो की अपेक्षा इससे ग्रसित होने की संभावना अधिक होती है। 
  • स्त्रियों में अधिक साफ सफाई को लेकर मोगरास्तता अधिक होती है वही पुरुषो में शंका करने की मनोग्रस्तता अधिक होती है।
  • भारत में किसी सामान्य व्यक्ति में इसके होने की संभावना लगभग 3.२% ग्रसित होने की सम्भावना होती है। 
  • पुरुषो में=३.५% और स्त्रियों में 3.२% तक ग्रसित होने की सम्भावना होती है।  
मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति क्या है?
दुश्चिंता मनोस्नायु विकृति रोगो के प्रकारो में से ही एक है मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति। इसमें दो विशेष प्रकार की घटनाये घटित होती है एक है मनोग्रस्तता और दूसरी बाध्यता। मनोग्रस्तता में व्यक्ति के मन में बार एक ही प्रकार का विचार चित्र व आवेग के रूप में बार बार आता है जिससे व्यक्ति सदैव परेशान रहता है उस विचार, इच्छा, आवेग को शांत करने अथवा उस पर नियंत्रण पाने के लिए वह निरंतर प्रयास रत्न रहता है। बाध्यता में व्यक्ति उस बार बार आने वाले विचार पर नियंत्रण पाने के लिए बार बार कोई अनुक्रिया करता है। इस प्रकार से इस रोग में व्यक्ति के मन में एक ही तरह का विचार बार बार आता है जिस पर नियंत्रण पाने के लिए व्यक्ति कोई अनुक्रिया बार बार करता है। 

उदाहरण-: एक व्यक्ति को यह लगता है की उसे कोई संक्रामक रोग हो जायेगा और उसके मन में संक्रामक रोगो से ग्रसित होने का उसे विचार बार बार आता है जो भय भीत करता है उसे लगता है की उसके हाथ में बैक्ट्रिया लग गए है जिससे उसे रोग हो जायेगा इस लिए वह अपना हाथ बार बार धोता है और कई बार तो वह घंटो तक अपना हाथ धोता ही रहता है जिससे उसके हाथ ख़राब होने लगते है और हाथो की अंगुलियो में एक समय पश्चात् घाव भी होने लगता है। 

इसके कुछ प्रमुख वर्गीकरण इस प्रकार है-:
  1. अधिक साफ सफाई करना या अधिक हाथ या पैर धुलना, या अधिक देर तक नहाना। 
  2. शंका होना; जैसे बार बार ये चेक करना की विजली का स्विच या गैस का रेगुलेटर बंद है की नहीं। 
  3. बार बार मन में गिनती-गिनना। 
  4. चीजों को हमेसा व्यवस्थित रखना और व्यवस्थित न होने पर परेशान होंना।
  5. प्रत्येक चीजों को अत्यधिक संभाल रखना भले वह व्यर्थ की वास्तु क्यों न हो। 
मनोग्रस्तता के सामान्य लक्षण-:
  • रोगाणु या गंदगी से दूषित होने या दूसरों को दूषित होने का डर। 
  • नियंत्रण खोने और अपने आप को या दूसरों को नुकसान पहुंचाने का डर। 
  • मन में यौन या हिंसक विचारों के चित्र बार बार आना। 
  • धार्मिक या नैतिक विचारों पर अत्यधिक ध्यान। 
  • आवश्यक वस्तुओ के खोने का निरंतर भय लगा रहना । 
  • वस्तुओ को व्यवस्थित रखने का निरंतर प्रयास करना। 
  • अत्यधिक अंधविश्वास; भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली मानना।  
बाध्यता के सामान्य लक्षण-:

  • चीजों की अत्यधिक बार बार-जांच करना, जैसे ताले, उपकरण, और स्विच। 
  • अपने प्रियजनों से बार-बार जाँच करने के लिए यह सुनिश्चित करना कि वे सुरक्षित हैं। 
  • चिंता को कम करने के लिए गिनती, अादि, कुछ शब्द दोहराते हैं। 
  • बहुत समय साफ या सफाई करना
  • चीजों को अत्यधिक व्यवस्थित करना। 
  • धार्मिक डर से उत्पन्न होने वाली अनुष्ठानों से अत्यधिक प्रार्थना करना। 
  • पुरानी अखबारों या खाली खाद्य कंटेनरों जैसे "जंक" जमा करना। 

बच्चो में मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति-:
हालांकि मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति की शुरुआत आमतौर पर किशोरावस्था या युवा वयस्कता के दौरान होती है। लेकिन कभी-कभी छोटे बच्चों में भी ऐसे लक्षण होते हैं जो ओसीडी की तरह दिखाई देते हैं। हालांकि, एडीएचडी, आत्मकेंद्रित, और टॉरेट्स सिंड्रोम जैसे अन्य विकारों के लक्षण भी मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति की तरह लग सकते हैं, इसलिए किसी भी निदान के पहले एक संपूर्ण चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक परीक्षा आवश्यक है।

मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति का उपचार-: इसका उपचार मनोचिकित्सालय में होता है जहाँ इस रोग के उपचार के लिए अलग अलग विशेषज्ञ रहते है। इस रोग के उपचार में कुछ विशेष दवाओं और मनोचिकित्सा पद्धतियों का प्रओग किया जाता है। यदि आपके आस पास किसी को इसके कुछ लक्षण हो तो एक बार मनोचिकित्सक से परामर्श अवश्य कर ले क्युकी रोग के गंभीर होने पर इस रोग के इलाज में काफी कठिनाईया भी आती है और उपचार में लगने वाली अवधि भी तब काफी बढ़ जाती है। अतः रोग के गंभीर होने के पूर्व ही उचित इलाज अवश्य करा ले। 

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