- सामान्यतः एक व्यक्ति के जीवन में दुश्चिंता रोग होने की संभावना 3-8% तक होती है|
- कुछ अध्ययनों के अनुसार भारत में सामान्य व्यक्तियों सामान्यीकृत दुश्चिंता मनोरोग होने की लगभग 19% तक है|
- समाज में बढ़ती आत्महत्याओं की संख्या का एक मूल कारण सामान्यीकृत दुश्चिंता मनोरोग भी है|
दुश्चिन्ता क्या है?
सामान्य जीवन में हम सभी कुछ न कुछ चिन्ता महसूस करते है| परन्तु यह चिन्ता क्षणिक होती है कुछ समय पश्चात हम स्वयं को सामान्य महसूस करने लगते है| परन्तु कभी कभी हमारी चिन्ता काफी बढ़ जाती है और कई दिनों तक चलती तब यह समस्या की विषय बन जाती है| सामान्य चिन्ता में जहाँ चिन्ता होने का कोई कारण होता है वही दुश्चिंता में कारण का पता नही चलता है, अथवा यह हमारे मन व शरीर में ही कुछ कारण नीहित होते है जो दुश्चिंता को जन्म देते है| दुश्चिंता की स्थिति में व्यक्ति निरन्तर कुछ न कुछ बातों को लेकर चिंतित रहता है भले वह चिन्ता का विषय हो|
सामान्यीकृत दुश्चिंता मनोरोग
यह दुश्चिंता मनोरोग का ही प्रकार है जिसमें रोगग्रस्त व्यक्ति निरन्तर चिन्तित रहता है, और वह अपने जीवन में प्रत्येक चीजों को लेकर चिंतित रहता है इसी कारण हम इसे सामान्यीकृत दुश्चिंता कहते है| यदि किसी व्यक्ति में सामान्यीकृत दुश्चिंता के कुछ लक्षण निरंतर लगभग 6 माह तक बने रहते है तब वह सामान्यीकृत दुश्चिंता मनोरोग से ग्रस्त है|
सामान्यीकृत दुश्चिंता के लक्षण
- मनोवैज्ञानिक लक्षण
- चिन्तित रहना-: व्यक्ति इसमें निरंतर कुछ न कुछ बातो को लेकर चिंतित रहता है, जहाँ उसे चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं होती है वहाँ भी व चिन्ता करता है| ज्यादातर उसकी चिन्ता का कोई कारण ही नहीं होता है और वह स्वयं भी नही समझ पाता है की वह क्यो इतना चिन्तित है| इसमें व्यक्ति सामान्य से कही ज्यादा ही चिन्तित रहता है|
- नींद न लगना-: रोग ग्रस्त व्यक्ति सदैव चिन्तित रहता है जिसके कारण वह सोना तो चाहता है परन्तु उसके मन में निरंतर चिन्ता के विचार आते रहते है
- थकावट-: इसमें रोगी सदैव स्वयं को बेचैन महसूस करता है और रात में उसे नींद भी नहीं आती है इस लिए स्वयं को हमेसा थका-थका महसूस करता है| और यह थकावट लगातार बनी रहती है|
- चिड़चिड़ापन-: निरंतर परेशान व चिन्तित रहने से व्यक्ति के स्वभाव में भी परिवर्तन आता है जिसके कारण वह चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है| वह किसी से बात नहीं करना चाहता है और जब उसे कोई कुछ कहता है या बात करना चाहता है तो रोगी को क्रोध आता है और वह रूखेपन से उत्तर देता है|
- हड़बड़ी-: रोगी अपनी चिन्ता से मुक्ति पाने के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है, और उसमें इस कारण हड़बड़ी लगी रहती है| और वह हर काम जल्दी बाजी में करता है और इधर उधर भटकता रहता है| स्वयं को आराम पहुँचाने में वह निरंतर असफल रहता है|
- ध्यान न लगा पाना-: सदैव चिन्तित रहने के कारण रोग का ध्यान सदैव अस्थिर रहना है और वह ज्यादा देर तक ध्यान नहीं लगा पात है| जिसके कारण उसकी कोई कार्य करने में मन नहीं लगता है और वग कार्य को बीच में ही छोड़ देता है|
- शारीरिक लक्षण
- मांसपेशीयों में तनाव व दर्द-: निरंतर बेचैनी, हड़बड़ी, अनिद्रा, और थकान रहने से रोगी के मांसपेशीयों में तनाव व दर्द रहता है| वह इस कारण भी विचलित रहता है और फलस्वरूप किसी कार्य को करने में स्वयं को असमर्थ महसूस करता है|
- मिचली आना-: रोगी को मिचली भी आती है जिससे वह परेशान रहता है और उसका खाने पीने का मन नहीं करता है| भोजन को नीगलने में भी परेशानी होती है, उल्टी आने लगती है|
- दस्त-: अधिकांश समय रोगी का चिन्तित व तनावग्रस्त रहने से उसका पाचन तन्त्र प्रभावित होता है जो आगे चलकर दस्त जैसी समस्या को उत्पन्न करता है और यह रोग की गम्भीरता को और भी बढ़ा देता है|
- पसीना आना-: चिन्ता,तनाव,घबड़ाहट और बेचैनी के कारण रोगी को सदैव पसीना भी आता है|
- बार-बार पेशाब लगना-: तनाव व बेचैनी के कारण रोगी को प्यास अधिक लगता है जिसके कारण वह बार बार पानी पीता रहता है फलस्वरूप उसे पेशाब भी बार बार लगता है|
- हृदय गति का बढ़ना-: तनाव व बेचैनी रोगी के हृदय गति को भी प्रभावित करती है जिससे उसका हृदय गति सामान्य से कही ज्यादा तेजी से धड़कता है| तीव्र हृदय गति के कारण रोगी और भी ज्यादा चिन्ता व बेचैनी महसूस करती है| कभी कभी रोगी के सीने में दर्द भी बना रहता है|
- सास फूलना-: रोगी के बेचैन व तनावग्रस्त रहने से उसे सास लेने में दिक्कत भी होती है क्यूकि तनाव की व बेचैनी की अवस्था में श्वसन क्रिया तीव्र हो जाती है और सास फूलने लगता है|
उपचार
सामान्यीकृत दुश्चिंता का इलाज आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में मौजूद है| इसका इलाज मानसिक चिकित्सा विभाग में किया जाता है जहाँ विशेषज्ञों की एक टीम होती है जिसमें मनोचिकित्सक, मनोविज्ञान विशेषज्ञ, मनोचिकित्सकीय समाज कार्यकर्ता और नर्स होते है| दुश्चिंता के इलाज में दवाओं, मनोचिकित्सा, और परामर्श का प्रयोग किया जाता है| यदि रोग का सही समय पर इलाज कराया जाता है तो रोग पूर्णतः समाप्त हो सकती है| परन्तु इलाज में देरी रोग को गम्भीर बना देती है फलस्वरूप उपचार की अवधि बढ़ जाती है और कुछ परिस्थितियों हमेसा दवा खाना पड़ सकता है| अतः यदि आपको यह समस्या हो तो शीघ्र अतिशीघ्र इलाज करा ले|यदि आपको इसके बारे में अधिक जानकारी चाहिए तो हमसे सम्पर्क करे या हमसे जुड़े
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Shiv Prakash (Ph.D)
Department of Psychiatry
IMS, BHU, Varanasi, Uttar Pradesh.
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