आज ८ नवम्बर के दिन ही भारत में पिछले वर्ष एक बड़ा परिवर्तन हुआ था जिसका त्वरित प्रभाव देखने को मिला। हमारे भारत देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के उद्देश्य से ५०० व १००० रु की बड़ी मुद्राओ के चलन को बंद कर दिया था। जिससे अच्छे बुरे सभी लोग एक सामान ढंग से प्रभावित हुए। मेरे इस लेख का उद्देश्य किसी भी तरह से प्रधान मंत्री जी विरोध करना नहीं है बल्कि सरकार द्वारा लागु किसी भी योजना या कार्यक्रम का देश की आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ता है उस पर आपका ध्यान आकर्षित कारन है। तो आईये हम विषय "नोट बंदी व आम जनता इसके पर प्रभाव " पर ध्यान देते है।
देश में नोट बंदी जहा एक अच्छे विचार और उद्देश्य को ध्यान में रख कर लागु किया गया था वही इस के लागु करने से एक और तो कुछ अच्छे परिणाम देखने को मिले दूसरी और कुछ दुष्परिणाम भी देखने को मिले है। तो क्या आप जानते है नोट बंदी के काराण देश में हर जगह कुछ विशेष परिणाम देखने को मिले। गरीब जनता पर इसका बहुत गहरा प्रभाव देखने को मिला है लोग कही नोट बंदी के कारण तनाव व चिंता ग्रस्त दिखे वही कितनो ने इस तनाव के बोझ में दबकर आत्महत्या तक कर लिया,कही तो कितने दिल के मरीज ह्रदय घात से मर गए कही खुद दिल के मरीज़ हो गए और कुछ को अन्य समस्याओ का सामना करना पड़ा। उन्ही कुछ घटनाओ का जिक्र हम यहाँ कर रहे है-:
कानपुर देहात में एक गर्भवती माहिला झींझक अपनी सास शशि के साथ घर के पास ही स्थित पंजाब नेशनल बैंक में पैसे निकलने के लिए कतार में लगी थी जहा पर वह लगभग चार घंटे तक खड़ी रही वही उन्हें प्रसव पीड़ा होने लगी और उसी जगह पर उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने "खजांची" रखा ताकि भविस्य में उसे बैंक से पैसे निकलने के लिए कभी क़तर में न खड़ा होना पड़े।
अमृतसर में एक किसान महिंदर सिह अपनी बेटी मनप्रीत के विवाह की तैयारियों में लगे थे। शादी के कार्ड रिस्तेदारो में बट चुके थे और शादी के समारोह की तैयारियां जोर शोर पर थी पर महिंदर जी अपनी बेटी विवाह के लिए दहेज़ के लिए पैसे जुगाड़ करने के लिए परेशान व चिंतित थे कि नोट बंदी का आगाज हो गया और उन्हें भी बैंक के चक्कर पे चक्कर लगाने पड़ रहे थे और बैंक से पैसे नहीं निकल रहे थे जब विवाह का दिन नजदीक आ गया तो उनकी चिंता बहुत बढ़ गयी और जब उन्हें कोई मार्ग नहीं मिला तो उन्होंने आत्मा हत्या कर लिया और परिवार में शादी की शहनाईओ की जगह मातम का माहौल छा गया।
रायभा के नागला ग्राम स्थित एक किसान होम सिंह जो कि पहले से ही कर्ज से दबे थे किसी तरह पाने परिवार का पालन पोषण कर पा रहे थे। परिवार की जिम्मेदारी और बढ़ते क़र्ज़ से निरंतर परेशान रहने के साथ साहूकारों के अनब सनाब व धमकियों को रोज़ सुन्ना पड़ता था उस पर नोट बंदी भी आगयी तब परिवार चला पाना और कठिन हो गया तंग आकर उन्होंने पेड़ पर कपडे के सहारे फांसी लगा ली और तनाव भरी इस समस्या से पार पा लिया।
फरीद कोट जिले में रहने वाली एक महिला इक़बाल कौर भी नोट बंदी के नकारात्मक प्रभाव की शिकार हो गयी. उनकी बेटी का विवाह २८ नवम्बर २०१६ को हुआ था वह भी बड़े अरमानो के साथ अपनी बेटी को विवाह की डोली में विदा करना चाहती थी पर नोट बन्दी के कारण वह भी काफी चिंतित थी विवाह की तैयारी की चिंता और पैसो की तंगी से परेशान होकर उन्होंने आत्मा हत्या कर लिया और अपनी बेटी की डोली विदा होने के पहले ही खुद दुनिया से विदा हो गयी.
उत्तर प्रदेश के महुआ माफी गांव में कथित तौर पर नोट बंदी के दौरान समय पर चिकित्सा से वंचित होने से एक 8 वर्षीय लड़की की मृत्यु हो गई। हिंदुस्तान टाइम्स के एक अनुसार, उस नाबलिग लड़की के पिता जब उसका इलाज कराने हॉस्पिटल ले जा रहे थे तब रस्ते में उनके वाहन का पैट्रॉल ख़त्म हो गया और जब वह पट्रोल पंप पर गए तब पैट्रॉल लेने के लिए जब उन्होंने १००० रु के पुराने नोट दिया तो पैट्रॉल पंप वालो ने वो नोट लेने से अस्वीकार कर दिया और पैट्रॉल नहीं दिया फलस्वरूप वे समय पर हॉस्पिटल नहीं पहुंच पाए और उनकी बेटी की मृत्यु हो गयी।
एक तो ऐसी विचित्र घटना हुयी जब एक महिला जिसका नाम मधु तिवारी है, उसको उसके पति ने एटीएम से पैसे निकलने के लिए भेजा। जब महिला एटीएम से पैसे नहीं निकाल पायी और घर पहुंची तो उसके पति ने पैसे के बारे में पूछा पर जब उसके पति को पता चला की वह पैसे निकलने में असफल हो गयी तब उसके पति ने क्रोध में आकर उसे मारा पिटा जिस दौरान उस महिला को गंभीर चोट लगी और उसकी मृत्यु हो गयी। उसके पति पर हत्या का केस दर्ज हुआ। ११ नवम्बर, कैच न्यूज़
राजस्थान के पाली डिस्ट्रिक्ट में एक एम्बुलेंस ने एक नवजात बच्चे को अस्पताल ले जाने से इनकार कर दिया, क्योंकि माता-पिता, चंपालाल मेघवाल के पास 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट थे , फलस्वरूप शिशु ने दम तोड़ दिया। (इंडियन एक्सप्रेस)
उत्तर प्रदेश के बुलंद शहर में एक बच्चे का इलाज हॉस्पिटल में करने से इंकार कर दिया गया और उसकी मृत्यु हो गयी। बताया जाता है कि बच्चे के माता पिता समय पर १००००० रु(नए नोटों के रूप में) की राशि इलाज के शुल्क के रूप में जमा नहीं कर पाए। वन इंडिया न्यूज़
इन सब घटनाओ के लिए कही न कही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष से नोट बंदी ही जिम्मेदार है। और ऐसी ही अनगिनत दुखद घटनाये नोट बंदी के परिणाम स्वरुप घटी। अब हम इन सबके लिए किसे जिम्मेदार ठहराए। सरकार द्वारा लागु किये किसी योजना का सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही तरह के परिणाम होते है अतः हमारे देश की सरकार को चाहिए कि कोई भी योजना लागु करने या आदेश देने के पूर्व उसके संभावित परिणामो के बारे में विचार विमर्श कर के ही कोई कदम उठाना चाहिए क्योकि गरीब जनता पर उसका सीधे असर पड़ता है।
यदि आपको किसी भी प्रकार का प्रश्न है तो हमें कमेंट बॉक्स में लिख कर पूछ सकते है।
उत्तर प्रदेश के महुआ माफी गांव में कथित तौर पर नोट बंदी के दौरान समय पर चिकित्सा से वंचित होने से एक 8 वर्षीय लड़की की मृत्यु हो गई। हिंदुस्तान टाइम्स के एक अनुसार, उस नाबलिग लड़की के पिता जब उसका इलाज कराने हॉस्पिटल ले जा रहे थे तब रस्ते में उनके वाहन का पैट्रॉल ख़त्म हो गया और जब वह पट्रोल पंप पर गए तब पैट्रॉल लेने के लिए जब उन्होंने १००० रु के पुराने नोट दिया तो पैट्रॉल पंप वालो ने वो नोट लेने से अस्वीकार कर दिया और पैट्रॉल नहीं दिया फलस्वरूप वे समय पर हॉस्पिटल नहीं पहुंच पाए और उनकी बेटी की मृत्यु हो गयी।
एक तो ऐसी विचित्र घटना हुयी जब एक महिला जिसका नाम मधु तिवारी है, उसको उसके पति ने एटीएम से पैसे निकलने के लिए भेजा। जब महिला एटीएम से पैसे नहीं निकाल पायी और घर पहुंची तो उसके पति ने पैसे के बारे में पूछा पर जब उसके पति को पता चला की वह पैसे निकलने में असफल हो गयी तब उसके पति ने क्रोध में आकर उसे मारा पिटा जिस दौरान उस महिला को गंभीर चोट लगी और उसकी मृत्यु हो गयी। उसके पति पर हत्या का केस दर्ज हुआ। ११ नवम्बर, कैच न्यूज़
राजस्थान के पाली डिस्ट्रिक्ट में एक एम्बुलेंस ने एक नवजात बच्चे को अस्पताल ले जाने से इनकार कर दिया, क्योंकि माता-पिता, चंपालाल मेघवाल के पास 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोट थे , फलस्वरूप शिशु ने दम तोड़ दिया। (इंडियन एक्सप्रेस)
इन सब घटनाओ के लिए कही न कही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष से नोट बंदी ही जिम्मेदार है। और ऐसी ही अनगिनत दुखद घटनाये नोट बंदी के परिणाम स्वरुप घटी। अब हम इन सबके लिए किसे जिम्मेदार ठहराए। सरकार द्वारा लागु किये किसी योजना का सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही तरह के परिणाम होते है अतः हमारे देश की सरकार को चाहिए कि कोई भी योजना लागु करने या आदेश देने के पूर्व उसके संभावित परिणामो के बारे में विचार विमर्श कर के ही कोई कदम उठाना चाहिए क्योकि गरीब जनता पर उसका सीधे असर पड़ता है।
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