- विश्व भर में लगभग २१० करोड़ लोग स्मार्ट फोन प्रयोग करते है।
- लगभग ६५ करोड़ लोग भारत में मोबाइल फोन का प्रयोग करते है।
- ३० करोड़ या उससे अधिक लोग भारत में स्मार्ट फोन का प्रयोग करते है।
स्मार्ट फोन का युग जब से आया है तब से लोगो को जैसे एक जैसा जादू का पिटारा ही मिल गया है। हम अब जब भी कही जाते है तो बिना अपने फोन के नहीं जाते है हर समय उसे अपने ही पास है। एक पल के लिए भी हमारे आँखों के सामने से ओझल होता है तब परेशान हो जाते है और जब तक वो मिलता नहीं है हमें चैन नहीं मिलता है। स्मार्ट फोन अविष्कार से हमारी जहाँ एक ओर कई समस्याएं हल हो गयी है वही कई नयी समस्याओ को इसने जन्म भी दिया है जिसके बारे में हम अनजान रहते है और दिन प्रतिदिन उन समस्याओं से घिरते चले जाते है। उन समस्याओं में से एक है स्मार्ट फोन एडिक्शन या नोमोफोबिया।
स्मार्ट फोन एडिक्शन या नोमोफोबिया क्या है?
स्मार्ट फोन एडिक्शन या नोमोफोबिया आज समाज सबसे अधिक पाया जा रहा है। इसमें व्यक्ति को स्मार्टफोन की इतनी आदत हो जाती है की वह उसके बिना एक पल भी रह नहीं पाता है दूसरे शब्दों में उससे दूर होने पर वह बेचैन, तनावफग्रस्त व दुश्चिंता महसूस करता है, उसे फोन के खो जाने या चोरी होने, किसी के द्वारा उनकी निजी जानकारी का को चुरा लेने, बैटरी डिस्चार्ज हो जाने, बैलेंस रिचार्ज करने, सोशल मीडिया के दोस्तों से दूर होने आदि बातो को लेकर सदैव चिंता होती है। इसके अतिरिक्त वह खली समय में तो फोन का प्रयोग करता ही रहता है साथ ही कुछ जरुरी काम करते वक्त जैसे किसी मीटिंग में रहने पर, दोस्तों या परिवार के सदस्यों के साथ रहने पर, खाना या पानी पीते वक्त, यहाँ तक की शौच के लिए जाते वक्त भी प्रयोग करता ही रहता है। और इन सबसे अधिक गंभीर तो तब अधिक समस्या की बात होती है जब वह वाहन चलते वक्त भी इसका प्रयोग करते है जो किसी बड़ी दुर्घटना का कारण भी बन सकती है।
स्मार्टफ़ोन की लत में विभिन्न आवेग नियंत्रण सम्बन्धी समस्याएं शामिल होती है, जिनमें से कुछ निम्न हैं:
आभासी रिस्ते व वास्तविक रिस्तो में टकराओ
व्यक्ति सदैव इंटरनेट व सोशल नेटवर्किंग साइट्स के माध्यम से एक आभासी दुनिया में जुड़ा रहता है जहा उसके एक समय में अनगिनत मित्र बन सकते है जिनसे वह लगतार संपर्क में रहता है फलस्वरूप उसके पास अपने वास्तविक मित्रो व परिवार के सदस्यों के लिए तनिक भी समयनहीं मिल पता है। जिसके कारण उसके वास्तविक सम्बन्ध भी ख़राब होने लगते है जो एक समय के पश्चात उसके लिए घातक सिद्ध हो सकते है। क्योकि जो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर आभासी मित्र होते है वह संभवतः वैसे नहीं होते है जैसे की दिखाई देते है, जो कई बार व्यक्ति के लिए दुस्कर सिद्ध होते है।
ऑनलाइन बाध्यता
व्यक्ति ज्यादातर समय ऑनलाइन ही रहता है, मोबाइल गेम खेलने व विभिन्न एप्लीकेशन के माध्यम से सदैव फ़ोन से जुड़ा ही रहता है। यहाँ तक की खरीदारी के लिए भी उसी का प्रयोग करता है और वास्तविक दुनिया से निरंतर कटता ही जाता है। वह एक तरह से इसके प्रयोग के लिए बाध्य हो जाता है और न चाह कर भी उसे जुड़ा रहता है। ऐसे व्यक्ति को आप देखेंगे तो पाएंगे कि वह बार-बार जेब से फोन निकाल कर देखता है कि कोई सन्देश या सूचना तो नहीं आयी है, अथवा वह व्यर्थ ही बार बार चेक करता रहता है।
जानकारियों की भरमार द्वारा बाध्यता
ज्यादातर समय इंटरनेट से जुड़े रहने से व्यक्ति अनगिनत जानकारियों से अवगत होता रहता है जो जब ये जानकारिया एक निशनिश्चत सीमा से परे हो जाती है तब समस्या की बात बन जाती है। व्यक्ति के मन में निरंतर कुछ विचार आते जाते है और वह बार बार और जानकारियों को जानने के लिए उत्सुक होता चला जाता है और सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए निरंतर तत्पर रहता है परन्तु संतोष नहीं हो पता है। ये एक समय के पश्चात व्यक्ति में एक अन्य मनोरोग की स्थिति को जन्म देती है जिसे हम मनोग्रस्तता बाध्यता मनोविकृति के नाम से जानते है।
स्मार्टफोन एडिक्शन के नकारत्मक प्रभाव
व्यक्ति में जब यह अधिक प्रभावकरि हो जाता है तब उसमे कई अन्य गंभीर समस्याएं भी जन्म लेती है जिनमे से कुछ इस प्रकार से है;
- दुश्चिंता का बढ़ाना-: एक शोध में पाया गया कि कार्य स्थल पर मोबाइल के प्रयोग से जहा एक और व्यक्ति के कार्यो में बाधाये आती है वही इससे व्यक्ति की कार्यक्षमता भी प्रभावित होती है जिससे उसका प्रदर्शन भी ख़राब होता है जो उसमे दुश्चिंता भी बढाता है।
- तनाव में बृद्धि-: मोबाइल के निरंतर प्रयोग से व्यक्ति अपनों को समय नहीं दे पता है जिससे उसके सम्बन्ध भी ख़राब होने लगते है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति घर पर भी अपने कार्यस्थल के लोगो से न चाहते हुए भी जुड़ा रहता है जो उसे तनाव ग्रस्त बनाये रखती है जो कही न कही उसके तनाव को और भी बढाती है।
- ध्यान व एकाग्रता में कमी-: व्यक्ति में इससे ध्यान लगाने व स्वयं को एकाग्रचित रखने में असमर्थता जैसी समस्याएं भी जन्म लेने लगाती है जो उसके अन्य कार्यो में भी बाधा उत्पन्न करती है।
- संरचनात्मकता में कमी-: चुकि इससे व्यक्ति की ध्यान व एकाग्रता में कमी आती है फलस्वरूप व्यक्ति की संरचनात्मकता में भी इससे कमी आती है वह कुछ भी नविन विषयो के बारे में सोच नहीं पाता है। और जिससे कोई भी नविन कार्य को सीखने में भी उसमे असक्तता आ जाती है।
- नींद की कमी-: निरंतर फ़ोन से जुड़े रहने से व्यक्ति धीरे धीरे उसका आदि होता जाता है और देर रात तक जगाता ही रहता है धीरे धीरे देर रात तक जगने से उसमे नींद की कमी आने लगाती है और फिर वह सोना तो चाहता है पर सो नहीं पता है।
- आत्म-अवशोषण को प्रोत्साहित करना-: निरंतर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर रहने से व्यक्ति वास्तविक दुनिया से विरक्त हो जाता है। अमेरिका में एक अध्ययन में पाया गया की इससे व्यक्ति में नकारात्मकता का विकास होता है जो आगे चलकर उसे तनाव और कुण्ठा आदि समस्याओ से ग्रस्त करता जाता है।
लक्षण-: इस रोग के प्रमुख लक्षण निम्न लिखित है;
- फ़ोन से दूर रहने पर तनाव व चिंताग्रस्त रहना।
- बार-बार फोन चेक करना।
- कभी-कभी फ़ोन के रिंग व कम्पन करने जैसा आभास होना पर वास्तव में ऐसा न होना।
- फोन के प्रयोग करते वक्त यदि कोटि बात करता है तो उस पर ध्यान न दे पाना।
- पढ़ाई में मन न लगना या किसी कार्य में ध्यान न लगा पाना।
- मन ये भय लगा रहना की फ़ोन चोरी हो जायेगा या खो जायेगा।
- दुसरो द्वारा निजी जानकारी का पता लगना या चुरा लेना।
यदि उपरोक्त लक्षण से आप ग्रसित है तो सही समय पर इससे सम्बंधित किसी विशेषज्ञ (मनोचिकित्सक) से परामर्श अवश्य ले और समस्या के बढ़ने के पूर्व ही इसका इलाज करा ले ताकि समस्या और भी गंभीर न हो।
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