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Wednesday, November 29, 2017

परीक्षा भय या एक्जामोफ़ोबिया-क्या आप जानते है इसके बारे में?

परीक्षा भय या एक्जामोफ़ोबिया यह एक मानसिक विकार है जो कि अधिकांशतः छात्रों में पाया जाता है। परन्तु अधिकांश अभिभावक और शिक्षक अज्ञानता के कारण इस समस्या की गंभीरता को पहचान नहीं पाते हैं। और वे केवल यही समझते हैं कि बच्चा असमर्थ अथवा ठीक से पढ़ाई नहीं करता है। अधिकांश माता-पिता परीक्षा में असफ होने पर बच्चो पर क्रोध करते है परन्तु वे यह नहीं जानने का प्रयास करते है की आखिर कही या कोई अन्य समस्या तो नहीं है जिसके कारण बच्चा अपनी परीक्षा में अच्छे प्राप्तांक नहीं प्राप्त कर पा रहा है। 

यद्यपि यह विकार किसी भी उम्र से शुरू हो सकता है, सामान्यतः यह बालयावस्था या किशोरावस्था के शुरुवात में होता है। इस मनोविकार में बच्चे में एक विशिष्ट स्थिति को लेकर डर रहता  है, यह स्थिति एक परीक्षा या एक साक्षात्कार हो सकता है। जहां एक छात्र की क्षमता का परीक्षण किया जाता है जब एक छात्र को इस स्थिति का सामना करना पड़ता है, तो उसमे अत्यधिक घबराहट व तनाव उत्त्पन्न हो जाता है और उसे यह भय होता है कि वह अपनी  परीक्षा के लिए अभी तैयार नहीं है या फिर उसमे उस स्थिति का सामना करने की क्षमता  नहीं है। इसके परिणामस्वरूप उनका परीक्षा में प्रदर्शन ख़राब हो जाता है और उन्हें परीक्षा में काम प्राप्तांक प्राप्त होते है। प्रत्येक ख़राब प्रदर्शन के पश्चात उनकी मनःस्थिति दिन प्रतिदिन ख़राब होती जाती है। 

कई अनुसंधानो द्वारा पहले ही साबित किया जा चका है कि किसी भी व्यक्ति को इष्टतम स्तर पर प्रदर्शन करने के लिए न्यूनतम स्तर की तनाव, चिंता या भय आवश्यक है। इस न्यूनतम स्तर की चिंता के कारण, मस्तिष्क असाधारण रूप से काम करता है; जिसके फलस्वरूप एक छात्र तुरंत ही सवालों के जवाब याद कर सकता है वही दूसरी ओर, अत्यधिक डर और चिंता का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है और यह छात्रों की यादास्त को अवरुद्ध या प्रभावित करता हैं भले ही उन्होंने अच्छी तरह से ही क्यों न तैयारी की हों। परीक्षा भय मनोरोग भी इसी सिद्धांत का पालन करता है और चिंता में वृद्धि के साथ साथ प्रदर्शन की गुडवत्ता भी घटती जाती है  नतीजतन, छात्र कोई वांछित परिणाम नहीं प्राप्त कर पाता है। जब यह भय या डर, उच्चतम बिंदु पर होता है, तो विद्यार्थी इतना डरा हुआ होता है कि वह परीक्षा देने से बचने के तरीकों की तलाश शुरू कर देता है और कई बार तो परीक्षा देने ही नहीं जाता है या फिर परीक्षा बीच में छोड़ कर परीक्षा हॉल से बाहर निकल जाता है।

एक्ज़ामोंफोबिया के कारण कई गंभीर समस्याएं जैसे तनाव, ध्यान में अस्थिरता, विस्मरण, निर्णय न ले पाना, घबड़ाहट, बेचैनी, आदि समस्याएं भी हो सकती है इसके साथ साथ शारीरिक समस्याए जैसे सर दर्द, उलटी,दस्त, बार-बार पेशाब आना, अादि भी हो सकती है। इससे आगे चलकर अवसाद या अन्य मानसिक रोग भी हो सकते है। 

एक्ज़ामोंफोबिया के कारण
यदि आप इस समस्या के बारे में जानेगे तो पाएंगे कि यह भय का बच्चे में बाल्यावस्था से विकसित होने लगता  है। परीक्षा भय बच्चो में होने के लिए कई करण जिम्मेदार होते है जिनके बारे में सभी लोगो को जानना चाहिए। इसके होने के निम्नलिखित कारण जिम्मेदार होते है ;

1. प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता दूसरे से भिन्न होती है। वह कुछ कार्यो या विषयो में बहुत अच्छा हो सकता है और कुछ में उतना अच्छा नहीं भी हो सकता है। बच्चा किसी-किसी विषय में बहुत ही अच्छा होता है  इसको ही हम प्रतिभा कहते हैं। कई माता-पिता अपने बच्चे से सामान्य से अधिक अपेक्षा करते हैं, और वे बच्चो पर अपने सपनों और अपनी इच्छाओ को लागू करते हैं। और जब बच्चा उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाता है, तो वह वह स्वय को शर्मिंदा महसूस करता हैं। कई बार माता-पिता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे ताना भी मारते है परिणामस्वरूप, बच्चा इस निष्कर्ष पहुंचता है कि यदि वह अपने माता-पिता की अपेक्षाओं के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर पाया तो उसे हमेशा ताने सहना होगा और शर्मिंदा होना होगा। और यही उसमे एक भय के रूप में बदल जाता है जो उसके प्रदर्शन को प्रभावित भी करता है। 

2. कई ऐसे माता-पिता भी होते हैं जो अपने बच्चों के संबंध में ज्यादा सुरक्षात्मक होते हैं। वे अपने बच्चों को किसी भी प्रकार से तनाव नहीं लेने देते है और हर समय उसकी सहायता करते रहते है। माता-पिता का अपने बच्चो ले लेकर अत्यधिक सुरक्षात्मक दृश्टिकोण उनके बच्चों में आत्मनिर्भरता, तनाव से लड़ने की क्षमता आदि गुणों के विकास में बाधा उत्तपन्न करता है। और यही आगे चलकर बच्चो में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्तपन्न करता है जिसमे से एक्ज़ामोंफोबिया एक गंभीर समस्या है। 

3. घर का वातावरण भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिन बच्चो के माता-पिता हमेशा झगड़ा करते रहते हैं, उनके बच्चे आमतौर पर स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाते है। उनमें असुरक्षा की भावना प्रभावी होने लगती है और कुछ समय पश्चात्  यही असुरक्षा की भावना बच्चो के मन परीक्षा के समय तनाव उत्त्पंन्न करती है।

4. कुछ शिक्षकों का व्यवहार भी इस डर के लिए जिम्मेदार होता है। व्यावहारिक या सैद्धांतिक परीक्षाओं के दौरान, ऐसा देखा गया है की कुछ शिक्षकों में छात्रों की मनःस्थिति को समझ नहीं पाते हैं। कुछ शिक्षकों में बस इस बात को जानने में अधिक रुचि होती  हैं कि छात्र क्या नहीं जानते और उनके किन प्रश्नो का जवाब नहीं देते  है। और जब बच्चे शिक्षकों द्वारा इस दौरान पूछे गए प्रश्नो का जवाब नहीं दे पाते है तब वे काफी हतोत्साहित होते है और कई अन्य समस्याओ से ग्रस्त हो जाते है जैसे; छात्र द्वारा अपना आत्मविश्वास खो देना, तनाव ग्रस्त होना, अपनी योग्यताओं को लेकर चिंतित रहना आदि। यही सब जब बढ़ने लगता है तब या एक्ज़ामोंफोबिया या परीक्षा के भय के रूप में बदल जाता है। 

एक्ज़ामोंफोबिया या परीक्षा के भय के निवारण के उपाय-: इस समस्या के समाधान के लिए निम्न बातो का ध्यान देना अति आवश्यक है
  1. माता-पिता को अपने बच्चो की योग्यताओ व क्षमताओं के विषय में अधिक से अधिक जानने का प्रयास करना चाहिए और इसी के आधार पर उन्हें विषयक्षेत्र के चयन में मदद करनी चाहिए न कि उन पर अपनी अपेक्षाओं का दबाव डालना चाहिए। 
  2. समय समय पर बच्चो से बातचित करना चाहिए और यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि उन्हें कहा समस्या हो रही है लेकिन यहाँ यह भी ध्यान देना चाहिए कि उस समस्या का समाधान बच्चे द्वारा ही करना चाहिए ताकि वह आत्मा निर्भर बने और तनाव पूर्ण परिस्थितियों का सामना कर सके। 
  3. माता-पिता को बच्चो को लेकर अति सुरक्षात्मक दृष्टिकोण नहीं रखना चाहिए बल्कि बच्चो को तनाव से लड़ने, परिस्थितियों का सामना करने आदि के लिए निरंतर मार्गदर्शित व उत्साहित करना चाहिए। 
  4. माता-पिता को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अपने बच्चो की प्रत्येक इच्छाओ या मांगो की पूर्ति नहीं करनी चाहिए। बल्कि बच्चो में इस समझ का विकास करना चाहिए की क्या उचित है की अनुचित अथवा क्या आवश्यक है क्या अनावश्यक। इससे बच्चे में परिस्थिति विशेष में निर्णय लेने मदद मिलती है और उनमे निर्णय लेने की क्षमता का भी विकाश होता है। 
  5. शिक्षकों को भी चाहिए कि वे विद्यार्थियों की मनोदशा को समझे, व बाल मनोविज्ञान के सिद्धांतो और विधियों के द्वारा विद्यार्थियों की समस्याओ का निदान व समाधान करे। शिक्षकों को विद्यार्थियों की कभी हतोत्शहित या प्रताड़ित नहीं करना चाहिए साथ ही साथ उन पर अत्यधिक अध्ययन को लेकर दबाव नहीं डालना चाहिए। जहा तक हो सके उन्हें विद्यार्थियों का अधिक से अधिक उचित दिशा में मार्गदर्शन करते रहना चाहिए। 
इस प्रकार से अपने देखा कि एक्ज़ामोंफोबिया या परीक्षा का भय, यह एक कितना गंभीर समस्या है जिसके विषय में हम सब को अधिक से अधिक जानने का प्रयास करना चाहिए। और ऐसी कोई समस्या आपके बच्चो को न हो इस लिए सदैव सजग भी रहना चाहिए। फिर भी यदि कोई इससे ग्रसित हो भी जाता है तो इसका इलाज मनोचिकित्सा में उपलब्ध है। समय रहते आपको इसका इलाज करा लेना चाहिए ताकि कोई और गंभीर शारीरिक या मानसिक रोग इसकी वजह से न उत्तपन्न हो सके। आशा करते है कि आपको हमारा ये लेख पसंद आया होगा। ऐसी ही कुछ अन्य रोचक जानकारिया हम आपके लिए आगे भी लाते रहेंगे। अतः हमसे जुड़े और अन्य लोगो तक भी इस जानकारी को पहुचाये। 




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